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स्थान ३: सूत्र ५२४
ठाणं (स्थान)
२. से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ २. स मुण्डो भूत्वा अगाराद् अनगारितां । अणगारितं पव्वइए पंचहिं महन्द- प्रवजितः प्रञ्चसु महाव्रतेषु शङ्कितः । एहि संकिते कंखिते वितिगिच्छिते काङ्कित: विचिकित्सितः भेदसमापन्न: भेदसमावणे कलुससमावण्णे पंच कलुषसमापन्नः पञ्चमहाव्रतानि नो महव्वताई णो सद्दहति यो पत्ति- श्रद्धत्ते नो प्रत्येति नो रोचयति, तं यति णो रोएति, तं परित्सहा परीषहाः अभियुज्य-अभियुज्य अभिअभिमुंजिय-अभिजुजिय अभि- भवन्ति, नो स परीषहान् अभियुज्यभवंति, णो से परिस्सहे अभि- अभियुज्य अभिभवति। जुजिय-अभिजंजिय अभिभवति । ३. से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ ३. स मुण्डो भूत्वा अगाराद् अनगारितां अणगारियं पव्वइए छहिं जीवणि- प्रव्रजित: षट्सु जीवनिकायेषु शङ्कितः काएहिं 'संकिते कंखिते विति- काङ्कितः विचिकित्सितः भेदसमापन्न: गिच्छिते भेदसमावण्णे कलुस- कलुषसमापन्नः षड्जीवनिकायान् नो समावण्णे छ जीवणिकाए णो श्रद्धत्ते नो प्रत्येति नो रोचयति, तं सद्दहति णो पत्तियति णो रोएति, परीषहाः अभियुज्य-अभियुज्य अभितं परिस्सहा अभिमुंजिय-अभि- भवन्ति, नो स परीषहान् अभियुज्यमुंजिय अभिभवंति, णो से परि- अभियुज्य अभिभवति । स्सहे अभिमुंजिय - अभिमुंजिय अभिभवइ।
२. वह मुण्डित तथा अगार से अनगार धर्म में प्रव्रजित होकर पांच महाव्रतों में शंकित, कांक्षित, विचिकित्सिक, भेद समापन्न और कलुष समापन्न होकर पांच महाव्रतों पर श्रद्धा नहीं करता, प्रतीति नहीं करता, रुचि नहीं करता। उसे परीषह जूझ-जूझकर अभिभूत कर देते हैं, वह परीषहों से जूझ-जूझकर उन्हें अभिभूत नहीं कर पाता। ३. वह मुण्डित तथा अगार से अनगार धर्म में प्रव्रजित होकर छ: जीव निकाय में शंकित, कांक्षित, विचिकित्सित, भेदसमापन्न और कलुषसमापन्न होकर छ: जीव निकाय पर श्रद्धा नहीं करता, प्रतीति नहीं करता, रुचि नहीं करता। उसे परीषह जूझ-जूझ कर अभिभूत कर देते हैं, वह परीषहों से जूझ-जूझ कर उन्हें अभिभूत नहीं कर पाता।
सद्दहंतस्स-विजय-पदं श्रद्दधानस्य विजय-पदम्
श्रद्धावान् की विजय ५२४. तओ ठाणा ववसियस्स हिताए त्रीणि स्थानानि व्यवसितस्य हिताय ५२४. व्यवस्थित निर्ग्रन्थ के लिए तीन स्थान
'सुभाए खमाए णिस्साए शुभाय क्षमाय निःश्रेयसाय आनुगामि- हित, शुभ, क्षम, निःश्रेयस और आणुगामियत्ताए भवंति, तं जहा- कत्वाय भवन्ति, तद्यथा
अनुगामिता के हेतु होते हैं१. से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ १. स मुण्डो भूत्वा अगाराद् अनगारितां १. वह मुण्डित तथा अगार से अनगार अणगारियं पव्वइए णिगंथे प्रबजित: नैर्ग्रन्थे प्रवचने निःशङ्कितः धर्म में प्रवजित होकर निर्ग्रन्थ प्रवचन में पावयणे हिस्संकिते 'णिवखिते निष्काक्षित: निविचिकित्सितः नो निःशंकित, निष्कांक्षित, निर्विचिकित्सित, णिदिवतिगिच्छिते णो भेदसमावणे भेदसमापन्नः नो कलुषसमापन्नः नैर्ग्रन्थं अभेदसमापन और अकलुषसमापन्न होकर णो कलुससमावण्णे जिग्गंथ प्रवचनं श्रद्धत्ते प्रत्येति रोचयति, स निर्ग्रन्थ प्रवचन में श्रद्धा करता है, प्रतीति पाक्यणं सद्दहति पत्तियति रोएति, परीषहान् अभियुज्य-अभियुज्य अभि- करता है, रुचि करता है। वह परीषहों से से परिस्सहे अभिमुंजिय- भवति, नो तं परीषहाः अभियुज्य- जूझ-जूझकर उन्हें अभिभूत कर देता है, अभिजुजिय अभिभवति, णो तं अभियुज्य अभिभवन्ति ।
उसे परीषह जूझ-जूझकर अभिभूत नहीं परिस्सहाअभिमुंजिय-अभिजुजिय
कर पाते। अभिभवंति।
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