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स्थान ३: सूत्र ५०१-५०५
ठाणं (स्थान)
२५२ उडमभिसमेति, ततो तिरियं, तिर्यक्, ततः पश्चात् अधः । अधोलोकः ततो पच्छा अहे। अहोलोगे णं दुरभिगमः प्रज्ञप्तः आयुष्मन् ! श्रमण ! दुरभिगमे पण्णत्ते समणाउसो।
लोक को जानता है और उसके बाद अधोलोक को जानता है। आयुष्मन् श्रमणो ! अधोलोक सबसे अधिक दुरभिगम है।
इड्ढि -पदं ऋद्धि-पदम्
ऋद्धि-पद ५०१.तिविधा इड्री पण्णत्ता, तं जहा- त्रिविधा ऋद्धिः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ५०१. ऋद्धि तीन प्रकार की होती हैदेविड्डी, राइड्डी, गणिड्डी। देवद्धि:, रायद्धि, गणिऋद्धिः । १. देवताओं की ऋद्धि, २. राजाओं की
ऋद्धि, ३. आचार्यों की ऋद्धि। ५०२. देविडी तिविहा पण्णता, तं जहा- देवद्धि: त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा- ५०२. देवताओं की ऋद्धि तीन प्रकार की होती
विमाणिड्डी, बिगुब्बणिड्डी, विमा द्धः, विकरणद्धिः, परिचारद्धिः । है-१. विमान ऋद्धि, २, दैक्रिय ऋद्धि, परियारणिड्डी।
३. परिचारण ऋद्धि। अहवा_देविडी तिविहा पण्णत्ता, अथवा_देवद्धिः त्रिविधा प्रज्ञप्ता, अथवा-देवताओं की ऋद्धि तीन प्रकार तं जहा–सचित्ता, अचित्ता, तद्यथा-सचित्ता अचित्ता मिश्रिता। की होती हैमीसिता।
१. सचित्त, २. अचित्त, ३. मिश्र। ५०३. राइट्टी तिविधा पण्णत्ता, तं जहा- राज्यद्धिः त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-- ५०३. राजाओं की ऋद्धि तीन प्रकार की होती रणो अतियाणिडी
राज्ञः अतिया द्ध:, राज्ञः निर्यादिः, है-१. अतियान ऋद्धि, २. निर्याण रण्णो णिज्जाणिड्डी, रण्णो बल- राज्ञः बल-वाहन-कोष-कोष्ठागारद्धिः। ऋषि", ३. सेना, वाहन, कोष और वाहण-कोस-कोट्ठागारिडी।
कोष्ठागार की ऋद्धि। अहवा–राइड्डी तिविहा पण्णता, अथवा राज्यद्धिः त्रिविधा प्रज्ञप्ता, अथवा-राजाओं की ऋद्धि तीन प्रकार तं जहा सचित्ता, अचित्ता, तदयथा-सचित्ता, अचित्ता, मिश्रिता। की होती हैमीसिता।
१. सचित्त, २. अचित्त, ३. मिश्र।
५०४. गणिड्डी तिविहा पण्णत्ता, तं गणिऋद्धिः त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा- ५०४. गणी की ऋद्धि तीन प्रकार की होती
जहा—णाणिड्डी, दंसणिड्डी, ज्ञानद्धिः, दर्शद्धिः, चरित्रद्धिः । है--१.ज्ञान की ऋद्धि,२. दर्शन की ऋद्धि, चरित्तिड्डी ।
३. चरित्र की ऋद्धि। अहवाग
हा पण्णत्ता, अथवा गणिऋद्धिः त्रिविधा प्रज्ञप्ता, अथवा-गणी की ऋद्धि तीन प्रकार की तं जहा—सचित्ता, अचित्ता, तद्यथा-सचित्ता, अचित्ता, मिश्रिता। होती हैमीसिता।
१. सचित्त, २. अचित्त, ३. मिथ।
गारव-पदं गौरव-पदम्
गौरव-पद ५०५. तओ गारवा पण्णता, तं जहा- त्रीणि गौरवानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा- ५०५. गौरव तीन प्रकार का होता हैइड्रीगारवे, रसगारवे, सातागारवे। ऋद्धिगौरवं, रसगौरव, सातगौरवम् । १. ऋद्धि गौरव, २. रस गौरव, ३. सात
गौरव।
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