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________________ ठाणं (स्थान) २४५ स्थान ३ : सूत्र ४६५-४६६ ४६५. तिहि ठाणेहि केवलकप्पा पुढवी त्रिभिः स्थानैः केवलकल्पा पृथिवी ४६५. तीन कारणों से केवल - कल्पा --- प्रायः प्रायः चलेज्जा, तं जहा चलेत्, तद्यथा— सारी ही पृथ्वी चलित होती है १. अधः अस्याः रत्नप्रभायाः पृथिव्याः घनवातः 'क्षुभ्येत्' । ततः स घनवातः 'क्षुब्ध' सन् घनोदधि एजयेत् । ततः स घनोदधिः एजितः सन् केवलकल्पां पृथिवीं चालयेत्, १. इस रत्नप्रभा पृथ्वी के निचले भाग में घनवात उद्वेलित हो जाता है । घनवात के उद्वेलित होने से घनोदधि कम्पित जाता है। घनोदधि के कम्पित होने पर केवल कल्पा पृथ्वी चलित हो जाती है। १. अधे णं इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए घणवाते गुप्पेज्जा । तए णं से घणवाते गुविते समाणे घणोदहिमेएज्जा । तए णं से ariant एइएसमा केवलकप्पं पुढवि चालेज्जा, २. देवे वा महिड्डिए जाव महेसक्ख तहारुवस्स समणस्स माहणस्स वाइड जुति जसं बलं वीरियं पुरिसक्कार परक्कम उवदंसेमाणे hamari पुढव चालेज्जा, ३. देवासुरसंगा मंसि वा वट्टमाणंसि ३. देवासुरसंग्रामे वा वर्तमाने केवलकेवलकप्पा पुढवी चलेज्जा- कल्पा पृथिवी चलेत् — २. देवो वा महर्षिको यावत् महेशाख्यः तथारूपस्य श्रमणस्य माहनस्य वा ऋद्धि द्युति यशः बलं वीर्य पुरुषकार-पराक्रमं उपदर्शयन् केवलकल्पां पृथिवीं चालयेत्, इच्चे हि तिहि ठाणेह केवलकप्पा इति एतैः त्रिभिः स्थाने केवलकल्पा पुढवी चलेज्जा । पृथिवी चलेत् । देवकिल्बिषक-पदम् देवfeoबसिय-पदं ४६६. तिविधा देवकिब्बिसिया पण्णत्ता, तं जहा — तिपलिओयमद्वितीया, तिसागरोवमद्वितीया, तेरससागरोवमद्वितीया । १. कहिं णं भंते! तिपलिओवमद्वितीया देवकिब्बिसिया परिवसंति ? उपि जोइसियाणं, हिट्ठिी सोहम्मीसासु कप्पेसु; एत्थ णं तिपलि - ओवमद्वितीया देवकब्बिसिया परिवसति । २. कहि णं भंते! तिसागरोवमद्वितीया देवकिब्बिसिया Jain Education International afafa fuक-पद १. तीन पल्योपम की स्थिति वाले, त्रिविधाः देवकिल्विषिकाः प्रज्ञप्ताः, ४६६ किल्बिषक देव तीन प्रकार के होते हैंतद्यथा— त्रिपल्योपमस्थितिकाः, त्रिसागरोपमस्थितिकाः, त्रयोदशसागरोपमस्थितिकाः । २. तीन सागरोपम की स्थिति वाले, 1 १. कुत्र भदन्त ! त्रिपल्योपमस्थितिकाः देवकिल्विषिकाः परिवसन्ति ? ३. तेरह सागरोपम की स्थिति वाले १. भन्ते ! तीन पल्योपम की स्थिति वाले किल्पक देव कहां परिवास करते हैं ? उपरिज्योतिष्काणां, अधः सौधर्मशानानां कल्पानां; अत्र त्रिपल्योपमस्थितिका: देव किल्विषिकाः परिवसन्ति । २. कुत्र भदन्त ! स्थितिकाः त्रिसागरोपमदेवकिल्विषिका: २. कोई महद्धिक, महाद्युति, महाबल तथा महानुभाग महेश नामक देव तथारूप श्रमण-माहन को अपनी ऋद्धि, द्युति, यश, बल, वीर्य, पुरुषकार तथा पराक्रम का उपदर्शन करने के लिए केवल-कल्पा पृथ्वी को चलित कर देता है । ३. देवों तथा असुरों के परस्पर संग्राम छिड़ जाने से केवल कल्पा पृथ्वी चलित हो जाती है इन तीन कारणों से केवलकल्पा पृथ्वी चलित होती है। For Private & Personal Use Only आयुष्मन् ! ज्योतिषी देवों से ऊपर तथा सौधर्म और ईशान देवलोक से नीच, यहां तीन पल्योपम की स्थिति वाले किल्विपिक देव परिवास करते हैं । २. भन्ते ! तीन सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषक देव कहां परिवास www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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