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स्थान ३ : सूत्र ४६७-४७१
ठाणं (स्थान)
२४६ परिवसंति ?
परिवसन्ति ? उप्पि सोहम्मीसाणाणं कप्पाणं, उपरि सौधर्मेशानानां कल्पानां, अधः । हेट्ठि सणंकुमारमाहिदेसु कप्पेसु सनत्कुमारमाहेन्द्राणां कल्पानां, अत्र एत्थ णं तिसागरोवमद्वितीया त्रिसागरोपमस्थितिकाः देवकिल्बिषिका, देवकिब्बिसिया परिवसंति। परिवसन्ति ।
करते हैं ? आयुष्मन् ! सौधर्म और ईशान देवलोक से ऊपर तथा सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोक से नीचे, यहां तीन सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक देव परिवास करते हैं। ३. भन्ते ! तेरह सागरोपम की स्थिति वाले किल्बिषिक देव कहां परिवास करते
३. कहिं णं भंते ! तेरससागरोवम- ३. कुत्र भदन्त ! त्रयोदशसागरोपमद्वितीया देवकि ब्विसिया स्थितिकाः देवकिल्बिषिकाः परिवसन्ति? परिवसंति? उष्पि बंभलोगस्स कप्पस्स, हेट्ठि उपरि ब्रह्मलोकस्य कल्पस्य, अधः लंतगे कप्पे ; एत्थ णं तेरससागरो- लान्तकस्य कल्पस्य; अत्र त्रयोदशवमद्वितीया देवकि ब्बिसिया सागरोपमस्थितिकाः देवकिल्विपिकाः परिवसंति?
परिवसन्ति ।
आयुष्मन् ! ब्रह्मलोक देवलोक से ऊपर तथा लांतक देवलोक से नीचे, यहां तेरह सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक देव परिवास करते हैं।
देवठिति-पदं देवस्थिति-पदम
देवस्थिति-पद ४६७. सक्कस्स णं देविदस्स देवरगणो शक्रस्य देवेन्द्रस्य देव राजस्य वाह्य- ४६७. देवेन्द्र देवराज शक्र के बाह्य परिषद् के
बाहिरपरिसाए देवाणं तिणि परिषदः देवानां त्रीणि पल्योपमानि देवों की स्थिति तीन पल्योपम की है।
पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। स्थितिः प्रज्ञप्ता। ४६८. सक्कस्स णं देविदस्स देवरणो शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य आभ्यंतर- ४६८. देवेन्द्र देवराज शक्र के आभ्यन्तर परिषद
अब्भितरपरिसाए देवीणं तिणि परिषदः देवीनां त्रीणि पल्योपमानि की देवियों की स्थिति तीन पल्योपम पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता। स्थितिः प्रज्ञप्ता।
की है। ४६६. ईसाणस्स णं देविदस्स देवरण्णो ईशानस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य बाह्य- ४६६. देवेन्द्र देवराज ईशान के वाह्य परिषद् की
बाहिरपरिसाए देवीणं तिण्णि परिषदः देवीनां त्रीणि पल्योपमानि देवियों की स्थिति तीन पल्योपम की है। पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता। स्थितिः प्रज्ञप्ता।
पायच्छित्त-पदं प्रायश्चित्त-पदम्
प्रायश्चित्त-पद ४७०. तिविहे पायच्छित्ते पण्णते, त त्रिविधं प्रायश्चित्तं प्रज्ञप्तम, तदयथा-४७०. प्रायश्चित्त तीन प्रकार का होता हैजहाणाणपायच्छिते.
ज्ञानप्रायश्चित्तं, दर्शनप्रायश्चित्तं, १.ज्ञानप्रायश्चित्त, २. दर्शनप्रायश्चित्त, दसणपायच्छित्ते, चरित्रप्रायश्चित्तम् ।
३. चरित्रप्रायश्चित्त । चरित्तपायच्छित्ते। ४७१. तओ अणुग्घातिमा पण्णत्ता, तं त्रयः अनुद्घात्याः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ४७१. तीन अनुदात्य [गुरु प्रायश्चित्त के
जहा-हत्थकम्मं करेमाणे, हस्तकर्म कुर्वन्, मैथुन सेवमानः, भागी होते हैं-१. हस्त कर्म करने वाला, मेहुणं सेवेमाणे, राईभोयणं रात्रिभोजनं भुजानः ।
२. मैथुन का सेवन करने वाला, भुंजमाणे।
३. रात्रि भोजन करने वाला।
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