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३४६. तीन प्रकार के पात्र
३६०-३६१. कर्मभूमि ३४७. वस्त्र-धारण के कारणों का निर्देश
३६२-३६४. व्यवहार की क्रमिक भूमिकाओं का निर्देश ३४८. आत्मरक्षक-अहिंसा के आलम्बन ३६५-३६६. विभिन्न दृष्टिकोणों से व्यवसाय का वर्गीकरण ३४६. विकटदत्तियों के प्रकार
४००. अर्थ-प्राप्ति के उपाय ३५०. सांभोगिक को विसांभोगिक करने के कारण ४०१. पुद्गलों के प्रकार ३५१. अनुज्ञा के प्रकार
४०२. नरक की विप्रतिष्ठिता और उसकी अपेक्षा ३५२. समनुज्ञा के प्रकार
४०३-४०६. मिथ्यात्व (असमीचीनता) के भेद-प्रभेद ३५३. उपसंपदा के प्रकार
४१०.धर्म के प्रकार ३५४. विहान (पद-त्याग) के प्रकार
४११. उपक्रम के प्रकार ३५५. वचन के प्रकार
४१२. वैयावृत्य के प्रकार ३५६. अवचन के प्रकार
४१३. अनुग्रह के प्रकार ३५७. मन के प्रकार
४१४. अनुशिष्टि के प्रकार ३५८. अमन के प्रकार
४१५. उपालम्भ के प्रकार ३५६. अल्पवृष्टि के कारण
४१६. कथा के प्रकार ३६०. महावृष्टि के कारण
४१७. विनिश्चय के प्रकार ३६१. देवता का मनुष्य-लोक में नहीं आ सकने के ४१८. श्रमण-माहन की पर्युपासना का फल कारण
४१६-४२१. प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार के आवास के प्रकार ३६२. देवता का मनुष्य-लोक में आ सकने के कारण ४२२-४२४. प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार के संस्तारक के प्रकार ३६३. देवता के स्पृहणीय स्थान
४२५-४२८. काल के भेद-प्रभेद ३६४. देवता के परिताप करने के कारणों का निर्देश ४२६. वचन के प्रकार ३६५. देवता को अपने च्यवन का ज्ञान किन हेतुओं ४३०. प्रज्ञापना के प्रकार
४३१. सम्यक् के प्रकार ३६६. देवता के उद्विग्न होने के हेतु
४३२-४३३. चारित्न की विराधना और विशोधि ३६७. विमानों के संस्थान
४३४.४३७. आराधना और उसके भेद-प्रभेद ३६८. विमानों के आधार
४३८. संक्लेश के प्रकार ३६६. विमानों के (प्रयोजन के आधार पर) प्रकार ४३६. असंक्लेश के प्रकार ३७०-३७१. चौबीस दंडकों में दृष्टियां
४४०-४४७. ज्ञान, दर्शन और चारित्र के अतिक्रम, व्यतिक्रम, ३७२. दुर्गति के प्रकार
अतिचार और अनाचार का वर्णन ३७३. सुगति के प्रकार
४४८. प्रायश्चित्त के प्रकार ३७४. दुर्गत के प्रकार
४४६-४५०. अकर्मभूमियां, ३७५. सुगत के प्रकार
४५१-४५४. मंदरपर्वत के दक्षिण तथा उत्तर के क्षेत्र और ३७६-३७८. विविध तपस्याओं में विविध पानकों का निर्देश
वर्षधर पर्वत ३७६. उपहृत भोजन के प्रकार
४५५-४५६. महाद्रह और तवस्थित देवियां ३८०. अवगृहित भोजन के प्रकार
४५७-४६२. महानदियां और अन्तर्नदियां ३८१. अवमोदरिका के प्रकार
४६३. धातकीषण्ड तथा पुष्करवर द्वीप में स्थित क्षेत्र ३८२. उपकरण अवमोदरिका ३८३. अप्रशस्त मनःस्थिति
४६४. पृथ्वी के एक भाग के कंपित होने के हेतु ३८४. प्रशस्त मनःस्थिति
४६५. सारी पृथ्वी के चलित होने के हेतु ३८५. शल्य के प्रकार
४६६. किल्बिषिक देवों के प्रकार और आवास-स्थल ३८६. विपुल तेजोलेश्या के अधिकारी
४६७-४६६. देव-स्थिति ३८७. त्रैमासिक भिक्षुप्रतिमा ।
४७०. प्रायश्चित्त के प्रकार ३८८-३८६. एकरात्रिकी भिक्षुप्रतिमा की फलश्रुति
४७१. अनुद्घात्य (गुरु प्रायश्चित्त) के कार्य
आदि
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