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________________ ८३. देवों के सिंहनाद करने के हेतु १४०-१४२. लोक के प्रकार ८४. देवों के चेलोत्क्षेप करने के हेतु १४३-१६०. देव-परिषदों का निर्देश ८५. देवों के चैत्यवृक्षों के चलित होने के हेतु १६१-१७२. याम (जीवन की अवस्था) के प्रकार और उनमें ८६. लोकान्तिक देवों का तत्क्षण मनुष्यलोक में आने प्राप्तव्य तथ्यों का निर्देश के कारण १७३-१७५. वय के प्रकार और उनमें प्राप्तव्य तथ्यों का ८७. माता-पिता, स्वामी और धर्माचार्य के उपकारों निर्देश का ऋण और उससे उऋण होने के उपाय १७६-१७७. बोधि और बुद्ध के प्रकार ८८. संसार से पार होने के हेतु १७८-१७६. मोह और मूढ़ के प्रकार ८९-६२. कालचक्र के भेद १८०-१८३. प्रव्रज्या के प्रकार १३. स्कंध से संलग्न पुद्गल के चलित होने के कारण १८४. नोसंज्ञा से उपयुक्त निर्ग्रन्थों के प्रकार १४. उपधि के प्रकार तथा उसके स्वामी १८५. संज्ञा और नोसंज्ञा से उपयुक्त निर्ग्रन्थों के प्रकार ६५. परिग्रह के प्रकार तथा उसके अधिकारी १८६. शैक्ष की भूमिकाएं और उनका कालमान ६६. प्रणिधान के प्रकार और उसके अधिकारी १८७. स्थविरों के प्रकार और अवस्था की दृष्टि से ६७-६८. सुप्रणिधान के प्रकार और उसके अधिकारी उनका कालमान ६६. दुष्प्रणिधान के प्रकार और उसके अधिकारी १८८. मन की तीन अवस्थाएं १००-१०३. योनि के प्रकार और अधिकारी १८६-३१४. विभिन्न परिस्थितियों में मनुष्य की विभिन्न १०४. तृणवनस्पति जीवों के प्रकार मानसिक दशाओं का वर्णन १०५-१०६. भरत और ऐरवत के तीर्थ ३१५. शीलहीन पुरुष के अप्रशस्त स्थान १०७. महाविदेह क्षेत्र के चक्रवर्ती-विजय के तीर्थ ३१६. शीलयुक्त पुरुष के प्रशस्त स्थान १०८. धातकीषंड तथा अर्धपुष्करवरद्वीप के तीर्थ ३१७. संसारी जीव के प्रकार १०६-११६. विभिन्न क्षेत्रों में आरों का कालमान, मनुष्यों ३१८. जीवों का वर्गीकरण __ की ऊंचाई और आयुपरिमाण ३१६. लोक-स्थिति के प्रकार ११७-११८. शलाकापुरुषों का वंश ३२०. तीन दिशाएं ११६-१२०. शलाकापुरुषों की उत्पत्ति । ३२१-३२५. जीवों की गति, आगति आदि की दिशाएं १२१. पूर्ण आयु को भोगने वालों का निर्देश (इनकी ३२६. वस जीवों के तीन प्रकार-तेजस्कायिक, वायुअकाल मृत्यु नहीं होती) ___ कायिक तथा द्वीन्द्रिय आदि १२२. अपने समय की आयु से मध्यम आयु को भोगने ३२७. स्थावर जीवों के तीन प्रकार--पृथ्वी, अप् और वालों का निर्देश वनस्पति १२३. बादर तेजस्कायिक जीवों की स्थिति ३२८-३३३. समय, प्रदेश और परमाणु-इन तीनों के १२४. बादर वायुकायिक जीवों की स्थिति अच्छेद्य, अभेद्य, अदाह्य आदि का कथन १२५. विविध धान्यों की उत्पादक शक्ति का कालमान ३३४. तीनों के अप्रदेशत्व का प्रतिपादन १२६-१२८. नरकावास की स्थिति ३३५. तीनों के अविभाजन का प्रतिपादन १२६-१३०. प्रथम तीन नरकावासों में वेदना ३३६. दुःख-उत्पत्ति के हेतु और निवारण सम्बन्धी १३१-१३२. लोक में तीन सम हैं संवाद १३३. उदकरस से परिपूर्ण समुद्र ३३७. दुःख अकृत्य, अस्पृश्य और अक्रियमाणकृत है१३४. जलचरों से परिपूर्ण समुद्र इसका निरसन १३५. सातवीं नरक में उत्पन्न होने वालों का निर्देश ३३८-३४०. मायावी का माया करके आलोचना आदि न १३६ सर्वार्थ सिद्ध विमान में उत्पन्न होने वालों का करने के कारणों का निर्देश निर्देश ३४१-३४३. मायावी का माया करके आलोचना आदि करने १३७. विमानों के वर्ण के कारणों का निर्देश १३८. देवों के शरीर की ऊंचाई। ३४४. श्रुतधारी पुरुषों के प्रकार १३६. यथाकाल पढ़ी जाने वाली प्रज्ञप्तियां ३४५. तीन प्रकार के वस्त्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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