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________________ ३६२. दो राशि ३३. कर्मबंध के प्रकार ३४. पाप-कर्म-बंध के कारण ३६. पाप कर्म की उदीरणा ३६. पाप कर्म का वेदन ३७. पाप कर्म का निर्जरण ३९८-४०२. आत्मा का शरीर से बहिर्गमन कैसे ? ४०३ - ४०४. क्षयोपशम से प्राप्त आत्मा की अवस्थाएँ ४०५. औपमिक काल - पल्योपम और सागरोपम का कालमान ४०६-४०७. समस्त जीव- निकायों में क्रोध आदि तेरह पापों की उत्पत्ति के आधार पर प्रकारों का निर्देश ४०८. संसारी जीवों के प्रकार ४०१-४१०. जीवों का वर्गीकरण ४११-४१३. श्रमण-निर्ग्रन्थों के अप्रशस्त मरणों का निर्देश ४१४-४१६. प्रशस्त मरणों का निर्देश और भेद-प्रभेद ४१७. लोक की परिभाषा ४१८. लोक में अनन्त क्या ? ४१६. लोक में शाश्वत क्या ? ४२०-४२१. बोधि और बुद्ध के प्रकार ४२२-४२३. मोह और मूढ़ के प्रकार ४२४-४३१. कर्मों के प्रकार ४३२-४३४. मूर्छा के प्रकार ४३५-४३७. आराधना के प्रकार ४३८-४४१. आठ तीर्थंकरों के वर्ण ४४२. सत्यप्रवाद पूर्व की विभाग संख्या ४४३-४४६. चार नक्षत्रों की तारा- संख्या ४४७. मनुष्यक्षेत्र के समुद्र ४४. सातवीं नरक में उत्पन्न चक्रवर्ती ४४९. भवनवासी देवों की स्थिति ४५०-४५३. प्रथम चार वैमानिक देवों की स्थिति ४५४. सौधर्म और ईशान कल्प में देवियां ४५५. तेजोलेश्या से युक्त देव ४५६-४६०. परिचारणा ( मैथुन) के विविध प्रकार और उनसे संबंधित वैमानिक कल्पों का कथन ४६१-४६२. पुद्गलों का पाप कर्म के रूप में चय, उपचय आदि का कथन ४६३-४६४. पुद्गल-पद ( २५ ) तीसरा स्थान १-३. इन्द्रों के प्रकार ४६. विक्रिया (विविध रूप-संपादन) के प्रकार Jain Education International ७. संख्या की दृष्टि से नैरयिकों के प्रकार ८. एकेन्द्रिय को छोड़कर शेष जीवों के संख्या की दृष्टि से प्रकार ६. तीन प्रकार की परिचारणा १०. मैथुन के प्रकार ११. मैथुन को कौन प्राप्त करता है ? १२. मैथुन का सेवन कौन करता है ? १३. योग ( प्रवृत्ति) के प्रकार १४. प्रयोग के प्रकार १५. करण ( प्रवृत्ति के साधन ) के प्रकार १६. करण (हिंसा) के प्रकार १७-२०. अल्प, दीर्घ (अशुभ-शुभ) आयुष्यबन्ध के कारण २१-२२. गुप्ति के प्रकार और उनके अधिकारी का निर्देश २३. अगुप्ति के प्रकार और उनके अधिकारी का निर्देश २४-२५- दण्ड (दुष्प्रवृत्ति) के प्रकार और उनके अधिकारी २६. गर्दा के प्रकार २७. प्रत्याख्यान के प्रकार २८. वृक्षों के प्रकार और उनसे मनुष्य की तुलना २- ३१. पुरुष का विभिन्न दृष्टिकोणों से निरूपण ३२-३५. उत्तम, मध्यम और जघन्य पुरुषों के प्रकार ३६-३८. मत्स्य के प्रकार ३६-४१. पक्षियों के प्रकार ४२-४७. उरपरिसर्प और भुजपरिसर्प के प्रकार ४६-५०. स्त्रियों के प्रकार ५१-५३. मनुष्यों के प्रकार ५४-५६. नपुंसकों के प्रकार ५७. तिर्थक्योकि जीवों के प्रकार ५८-६८. संक्लिष्ट और असंक्लिष्ट लेश्याएं और उनके अधिकारी ६६. ताराओं के चलित होने के कारण ७०. देवों के विद्युत्प्रकाश करने के तीन कारण ७१. देवों के गर्जारव करने के तीन कारण ७२-७३. मनुष्य लोक में अंधकार और प्रकाश होने के हेतु ७४-७५. देवलोक में अन्धकार और प्रकाश होने के हेतु ७६-७८. देवताओं का मनुष्य लोक में आगमन, समवाय और कलकल ध्वनि के तीन-तीन हेतु ७६-८०. देवताओं का तत्क्षण मनुष्य लोक में आने के कारण ८१. देवताओं का अभ्युत्थित होने के कारण ८२. देवों के आसन चलित होने के कारण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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