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________________ ठाणं (स्थान) २३४ asuओग किरिया, कायपओग काय प्रयोगक्रिया । किरिया । ४०६. समुदाणकिरिया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा - अनंतर समुदाण किरिया, परंपरसमुदाणकिरिया, तदुभयसमुदाण किरिया । ४०७. अण्णाण किरिया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा— मतिअण्णाणकिरिया, सुतअण्णाण किरिया, विभंगअण्णाण किरिया । ४०८. अविणए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा— सच्चाई, निरालंबणता, णाणापेज्जदोसे | देसण्णाणे, सव्वण्णाणे, भावण्णाणे । ४०. अण्णाणे तिविधे पण्णत्ते, तं जहा अज्ञानं त्रिविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथादेशाज्ञानं, सर्वाज्ञानं, भावाज्ञानं । धम्मपदं ४१०. तिविहे धम्मे पण्णत्ते, तं जहा सुयधम्मे, चरितम्मे, अस्थिकामे । स्थान ३ : सूत्र ४०६-४११ २. वचनप्रयोग क्रिया, ३. कायप्रयोग क्रिया । समुदानक्रिया त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा- ४०६. समुदान क्रिया तीन प्रकार की होती हैअनन्तरसमुदानक्रिया, परम्परसमुदानक्रिया, १. अनन्तरसमुदान क्रिया, २. परम्परसमुदान क्रिया, तदुभयसमुदानक्रिया | ३. तदुभयसमुदान क्रिया । ४०७. अज्ञान क्रिया तीन प्रकार की होती है अज्ञान क्रिया त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा मत्यज्ञानक्रिया, श्रुताज्ञानक्रिया, विभङ्गाज्ञानक्रिया | १. मतिअज्ञान क्रिया, २. श्रुतअज्ञान क्रिया, ३. विभंगअज्ञान क्रिया । अविनयः त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा— देशत्यागी, निरालम्बनता, नानाप्रयोदोषः । Jain Education International धर्म-पदम् त्रिविधः धर्मः प्रज्ञप्तः, तद्यथाश्रुतधर्मः चरित्रधर्मः अस्तिकायधर्मः । उवक्कम-पदं उपक्रम-पदम् ४११. तिविधे उवक्कमे पण्णत्ते, तं जहा- त्रिविधः उपक्रमः प्रज्ञप्तः तद्यथा— For Private & Personal Use Only ४०८. अविनय तीन प्रकार का होता है १. देश त्याग - देश को छोड़कर चले जाना, २. निरालम्बन - समाज से अलग हो जाना, ३. नानाप्रेयोद्वेषी - प्रेम और द्वेष का नाना रूप से प्रयोग करना, प्रिय के साथ प्रेम और अप्रिय के साथ द्वेष—इस सामान्य नियम का अतिक्रमण करना । ४०६. अज्ञान तीन प्रकार का होता है १. देश अज्ञान -- ज्ञातव्य वस्तु के किसी एक अंश को न जानना, २. सर्व अज्ञान - ज्ञातव्य वस्तु को सर्वतः न जानना, ३. भाव अज्ञान - वस्तु के ज्ञातव्य पर्यायों को न जानना । धर्म-पद ४१०. धर्म तीन प्रकार का होता है १. श्रुत-धर्म, २. चरित्र धर्म, ३. अस्तिकाय धर्म । उपक्रम पद ४११. उपक्रम [ उपायपूर्वक आरम्भ ] तीन www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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