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ठाणं (स्थान)
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asuओग किरिया, कायपओग काय प्रयोगक्रिया ।
किरिया ।
४०६. समुदाणकिरिया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा - अनंतर समुदाण किरिया, परंपरसमुदाणकिरिया, तदुभयसमुदाण किरिया । ४०७. अण्णाण किरिया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा— मतिअण्णाणकिरिया, सुतअण्णाण किरिया,
विभंगअण्णाण किरिया । ४०८. अविणए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा— सच्चाई, निरालंबणता, णाणापेज्जदोसे |
देसण्णाणे, सव्वण्णाणे,
भावण्णाणे ।
४०. अण्णाणे तिविधे पण्णत्ते, तं जहा अज्ञानं त्रिविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथादेशाज्ञानं, सर्वाज्ञानं, भावाज्ञानं ।
धम्मपदं
४१०. तिविहे धम्मे पण्णत्ते, तं जहा सुयधम्मे, चरितम्मे,
अस्थिकामे ।
स्थान ३ : सूत्र ४०६-४११
२. वचनप्रयोग क्रिया,
३. कायप्रयोग क्रिया ।
समुदानक्रिया त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा- ४०६. समुदान क्रिया तीन प्रकार की होती हैअनन्तरसमुदानक्रिया, परम्परसमुदानक्रिया,
१. अनन्तरसमुदान क्रिया,
२. परम्परसमुदान क्रिया,
तदुभयसमुदानक्रिया |
३. तदुभयसमुदान क्रिया ।
४०७. अज्ञान क्रिया तीन प्रकार की होती है
अज्ञान क्रिया त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा मत्यज्ञानक्रिया, श्रुताज्ञानक्रिया, विभङ्गाज्ञानक्रिया |
१. मतिअज्ञान क्रिया,
२. श्रुतअज्ञान क्रिया,
३. विभंगअज्ञान क्रिया ।
अविनयः त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा— देशत्यागी, निरालम्बनता, नानाप्रयोदोषः ।
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धर्म-पदम्
त्रिविधः धर्मः प्रज्ञप्तः, तद्यथाश्रुतधर्मः चरित्रधर्मः अस्तिकायधर्मः ।
उवक्कम-पदं
उपक्रम-पदम्
४११. तिविधे उवक्कमे पण्णत्ते, तं जहा- त्रिविधः उपक्रमः प्रज्ञप्तः तद्यथा—
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४०८. अविनय तीन प्रकार का होता है
१. देश त्याग - देश को छोड़कर चले जाना,
२. निरालम्बन - समाज से अलग हो
जाना,
३. नानाप्रेयोद्वेषी - प्रेम और द्वेष का नाना रूप से प्रयोग करना, प्रिय के साथ प्रेम और अप्रिय के साथ द्वेष—इस सामान्य नियम का अतिक्रमण करना । ४०६. अज्ञान तीन प्रकार का होता है
१. देश अज्ञान -- ज्ञातव्य वस्तु के किसी एक अंश को न जानना,
२. सर्व अज्ञान - ज्ञातव्य वस्तु को सर्वतः न जानना,
३. भाव अज्ञान - वस्तु के ज्ञातव्य पर्यायों को न जानना ।
धर्म-पद
४१०. धर्म तीन प्रकार का होता है
१. श्रुत-धर्म, २. चरित्र धर्म, ३. अस्तिकाय धर्म ।
उपक्रम पद
४११. उपक्रम [ उपायपूर्वक आरम्भ ] तीन
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