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________________ ठाणं (स्थान) पोग्गल - पदं पुद्गल-पदम् पुद्गल - पद ४०१. तिविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं त्रिविधाः पुद्गलाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा— ४०१. पुद्गल तीन प्रकार के होते हैंप्रयोगपरिणताः, मिश्रपरिणताः, विस्रसापरिणताः । १. प्रयोग - परिणत - जीव के द्वारा गृहीत पुद्गल, २. मिश्र - परिणत – जीव के प्रयोग तथा स्वाभाविक रूप से परिणत पुद्गल, ३. विस्रसा - स्वभाव से परिणत पुद्गल । जहा - पओगपरिणता, मीसापरिणता, बीससापरिणता । जरग - पदं ४०२. तिपतिट्टिया गरगा पण्णत्ता, तं जहा - पुढ विपतिद्विता, आगास - पतिद्विता, आयपट्टिया | गम-संग्रह-ववहाराणं पुढवि पइट्टिया, उज्जुसुतस्स आगास पतिट्ठिया, तिहं सद्दणयाणं आयपतिट्टिया । मिच्छत्त-पदं ४०३. तिविधे मिच्छते पण्णत्ते, तं जहा -- अकिरिया, अविणए, अण्णाणे । ४०४. अकिरिया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा—पओग किरिया, समुदाणकिरिया, अण्णाणकिरिया । ४०५. पओगकिरिया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा मणपओग किरिया, Jain Education International २३३ नरक-पदम् नरक - पद त्रिप्रतिष्ठिताः नरकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ४०२. नरक विप्रतिष्ठित है"पृथिवीप्रतिष्ठिताः, आकाशप्रतिष्ठिताः, आत्मप्रतिष्ठिताः । नैगम-संग्रह-व्यवहाराणां पृथिवी - प्रतिष्ठिताः, ऋजुसूत्रस्य आकाशप्रतिष्ठिताः, त्रयाणां शब्दनयानां आत्मप्रतिष्ठिताः । अक्रिया त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथाप्रयोगक्रिया, समुदानक्रिया, अज्ञानक्रिया । स्थान ३ : सूत्र ४०१-४०५ प्रयोगक्रिया त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा मनः प्रयोगक्रिया, वाक्प्रयोगक्रिया, मिथ्यात्व-पदम् मिथ्यात्व - पद त्रिविधं मिथ्यात्वं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा — ४०३. मिथ्यात्व ? असमीचीनता - तीन अक्रिया, अविनयः, अज्ञानम् । प्रकार का होता है १. अक्रिया - असमीचीनक्रिया, २. अविनय - असमीचीन संबंध विच्छेद, ३. अज्ञान - असमीचीन ज्ञान । For Private & Personal Use Only १. पृथ्वी प्रतिष्ठित, २. आकाश प्रतिष्ठित, ३. आत्म प्रतिष्ठित । नगम संग्रह तथा व्यवहार-नय की अपेक्षा पृथ्वी प्रतिष्ठित हैं ऋजु सूत्रनय की अपेक्षा से वे आकाश प्रतिष्ठित तीन शब्द-नयों की अपेक्षा से वे आत्मप्रतिष्ठित हैं । ४०४. अक्रिया " तीन प्रकार की होती है १. प्रयोगक्रिया — मन, वचन और काया की प्रवृत्ति, २. समुदानक्रिया-कर्म पुद्गलों का आदान ३. अज्ञानक्रिया -- असम्यग्ज्ञान की, प्रवृत्ति । ४०५. प्रयोग क्रिया तीन प्रकार की होती है१. मनप्रयोग क्रिया, www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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