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________________ ठाणं (स्थान) २३० स्थान ३: सूत्र ३८४-३८८ अखमाए अणिस्सेसाए अणाणु- अक्षमाय अनिःश्रेयसाय अनानुगामि- अनिःश्रेयस् तथा अनानुगामिता [अशुभ गामियत्ताए भवंति, तं जहा- कत्वाय भवन्ति, तं जहा बन्धन] के हेतु होते हैंकअणता, कक्करणता, कूजनता, 'कर्करणता', अपध्यानता। १. कूजनता-आर्त स्वर करना, अवज्झाणता। २. कर्कणरता-परदोषोद्भावन के लिए प्रलाप करना, ३. अपध्यानता-अशुभ चिन्तन करना। ३८४. तओठाणा णिग्गंथाण वा णिग्गं- त्रीणि स्थानानि निर्ग्रन्थानां वा निर्ग्रन्थीनां ३८४. निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों के लिए तीन थीण वा हिताए सुहाए खमाए वा हिताय शुभाय क्षमाय निःश्रेयसाय स्थान हित, शुभ, क्षम, निःश्रेयस तथा णिस्सेसाए आणुगामिअत्ताए भवंति, आनुगामिकत्वाय भवन्ति, तद्यथा- आनुगामिता के हेतु होते हैं- १. अकूजनता, तं जहा—अकूअणता, अकूजनता, 'अकर्करणता', अनपध्यानता। २. अकर्करणता, ३. अनपध्यानता। अकक्करणता, अणवज्झाणता। सल्ल-पदं शल्य-पदम् शल्य-पद ३८५. तओ सल्ला पण्णत्ता, तं जहा- त्रीणि शल्यानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा- ३८५. शल्य तीन प्रकार का है-१. माया शल्य, मायासल्ले, णियाणसल्ले, मिच्छा- मायाशल्यं, निदानशल्यं २. निदान शल्य, ३. मिथ्यादर्शन शल्य । दसणसल्ले। मिथ्यादर्शनशल्यम्। तेउलेस्सा -पदं तेजोलेश्या-पदम् तेजोलेश्या-पद ३८६. तिहि ठाणेहि समणे णिग्गंथे त्रिभिः स्थानैः श्रमणः निर्ग्रन्थः संक्षिप्त- ३८६. तीन स्थानों से श्रमण निर्ग्रन्थ संक्षिप्त की संखित्तविउलतेउलेस्से भवति, तं विपुलतेजोलेश्यो भवति, तद्यथा- हुई विपुल तेजोलेश्या वाले होते हैंजहा_आयावणताए, खंतिखमाए, आतापनया, क्षान्तिक्षमया, १. आतापना लेने से, अपाणगेणं तवोकम्मेणं । अपानकेन तपःकर्मणा। २. क्रोधविजयी होने के कारण समर्थ होते हुए भी क्षमा करने से, ३. जल रहित तपस्या करने से। भिक्खुपडिमा-पदं भिक्षुप्रतिमा-पदम् भिक्षुप्रतिमा-पद ३८७. तिमासियं णं भिक्खुपडिम त्रिमासिकी भिक्षुप्रतिमा प्रतिपन्नस्य ३८७. त्रैमासिक भिक्षु प्रतिमा से प्रतिपन्न पडिवण्णस्स अणगारस्स कप्पंति अनगारस्य कल्पते तिस्रः दत्तीः भोजनस्य अनगार भोजन और पानी की तीन दत्तियां तओ दत्तीओ भोअणस्स पडिगा- प्रतिग्रहीतु, तिस्रः पानकस्य। ले सकता है। हेत्तए, तओ पाणगस्स। ३८८. एगरातियं भिक्खुपडिमं सम्मं एकरात्रिकी भिक्षुप्रतिमां सम्यग् अननु- ३८८. एक रात्रि की बारहवीं भिक्षु-प्रतिमा का अणणुपालेमाणस्स अणगारस्स इमे पालयतः अनगारस्य इमानि त्रीणि सम्यग् अनुपालन नहीं करने वाले भिक्षु तओ ठाणा अहिताए असुभाए स्थानानि अहिताय अशुभाय अक्षमाय के लिए तीन स्थान अहित, अशुभ, अक्षम, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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