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ठाणं (स्थान)
तं जहा आयामए, सोवीरए, सुद्धविडे ।
पिडेसणा-पदं
३७९. तिविहे उवहडे पण्णत्ते, तं जहाफलिओ वहडे, सुद्धोवहडे ghar |
३८०. तिविहे ओग्गहिते पण्णत्ते, तं जहाजं च ओगिहति, जं च साहरति, जं च आसगंसि पक्खिदति ।
जहा -
उवगरणोमोयरिया, भत्तपाणो मोदरिया, भावोमोदरिया ।
३८२. उवगरणोमोदरिया
पण्णत्ता, त जहातं
२२६
आचामक, सौवीरकं, शुद्धविकटम् ।
णिग्गंथ - चरिया-पदं
३८३. तओ ठाणा णिग्गंथाण वा णिग्गं थीण वा अहियाए असुभाए
पिण्डैषणा-पदम्
त्रिविधं उपहृतं प्रज्ञप्तम्, तद्यथाफलिकोपहृतं शुद्धोपहृतं संसृष्टोपहृतम् ।
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त्रिविधं अवगृहीतं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा— यच्च अवगृहाति यच्च संहरति, यच्च आस्यके प्रक्षिपति ।
तिविहा
उपकरणावमोदरिका त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा— एकं वस्त्रं, एक पात्रं,
एगे वत्थे, एगे पाते, चियत्तोव हि - 'चियत्त' [ सम्मत ] उपधि-स्वादनम् ।
साइज्जणया ।
ओमोयरिया-पदं
अवमोदरिका-पदम्
अवमोदरिका-पद
३८१. तिविधा ओमोयरिया पण्णत्ता, तं त्रिविधा अवमोदरिका प्रज्ञप्ता, तद्यथा - ३८१. अवमोदरिका - कम करने की वृत्ति तीन
प्रकार की होती है
१. उपकरण अवमोदरिका,
उपकरणावमोदरिका, भक्तपानावमोदरिका, भावावमोदरिका ।
निर्ग्रन्थ-चर्या-पदम्
त्रीणि स्थानानि निर्ग्रन्थानां वा निर्गन्थीनां वा अहिताय अशुभाय
स्थान ३ : सूत्र ३७६-३८३
१. आयामक अवस्रावण - ओसामन | २. सौवीरक- कांजी,
३. शुद्धविकट — उष्णोदक |
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पिण्डेषणा- पद
३७६. उपहृत भोजन तीन प्रकार का होता है१. फलिकोपहृत – खाने के लिए थाली आदि में परोसा हुआ भोजन - अवगृहीत नाम की पांचवीं पिण्डेषणा ।
२. शुद्धोपहृत – खाने के लिए साथ में
लाया हुआ लेप रहित भोजन - अल्पलेपा
नाम की चौथी पिण्डेषणा ।
३. संसृष्टोपहृत खाने के लिए हाथ में उठाया हुआ भोजन |
३८०. अवगृहीत भोजन तीन प्रकार का होता है१. परोसने के लिए उठाया हुआ,
२. परोसा हुआ, ३. पुनः पाक-पात्र के मुंह में डाला हुआ ।
२. भक्तपान अवमोदरिका,
३. भाव अवमोदरिका - क्रोध आदि का परित्याग ।
३८२. उपकरण अवमोदरिका तीन प्रकार की होती है-- १. एक वस्त्र रखना,
२. एक पात्र रखना,
३. सम्मत उपकरण रखना ।
निर्ग्रन्थ-चर्या - पद
३५३. निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों के लिए तीन स्थान अहित, अशुभ, अक्षम [ अनुपयुक्तता ],
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