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________________ ठाणं (स्थान) २२८ स्थान ३ : सूत्र ३७०-३७८ दिट्ठि-पदं दृष्टि-पदम् दृष्टि-पद ३७०. तिविधा जेरइया पण्णता, तं त्रिविधाः नैरयिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ३७०. नैरयिक तीन प्रकार के होते हैंजहा—सम्मादिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्यग्दृष्टयः, मिथ्यादृष्टयः, १. सम्यग्-दृष्टि, २. मिथ्या-दृष्टि, सम्मामिच्छादिट्ठी। सम्यमिथ्यादृष्टयः । ३. सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि । ३७१. एवं_विलिदियवज्ज जाव एवम्-विकलेन्द्रियवर्ज यावत ३७१. इसी प्रकार विकलेन्द्रियों को छोड़कर वेमाणियाणं। वैमानिकानाम् । सभी दण्डकों के तीन-तीन प्रकार हैं। दुग्गति-सुगति-पदं दुर्गति-सुगति-पदम् दुर्गति-सुगति-पद ३७२. तओ दुग्गतीओ पण्णत्ताओ, तं तिस्रः दुर्गतयः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ३७२. दुर्गति तीन प्रकार की है जहा—णेरइयदुग्गती, तिरिक्ख- नैरयिकदुर्गतिः, तिर्यग्योनिकदुर्गतिः, १. नरक दुर्गति, २. तिर्यक योनिक दुर्गति, जोणियदुग्गती, मणुयदुग्गती। मनुजदुर्गतिः । ३. मनुज दुर्गति। ३७३. तओ सुगतीओ पण्णत्ताओ, तं तिनः सुगतयः प्रज्ञप्ताः तद्यथा- ३७३. सुगति तीन प्रकार की है जहा—सिद्धसोगती, देवसोगती, सिद्धसुगतिः, देवसुगतिः, मनुष्यसुगतिः। १. सिद्ध सुगति, २. देव सुगति, मणुस्ससोगती। ३. मनुष्य सुगति । ३७४. तओ दुग्गता पण्णत्ता, तं जहा- त्रयः दुर्गताः प्रज्ञप्ताः , तद्यथा- ३७४. दुर्गत तीन प्रकार के हैं णेरइयदुग्गता, तिरिक्खजोणिय- नैरयिकदुर्गताः, तिर्यग्योनिकदुर्गताः, १. नैरयिक दुर्गत, २.तिर्यक-योनिक दुर्गत, दुग्गया, मणुस्सदुग्गता। मनुष्यदुर्गताः। ३. मनुष्य दुर्गत। ३७५. तओ सुगता पण्णत्ता, तं जहा- त्रयः सुगताः प्रज्ञप्ताः , तद्यथा- ३७५. सुगत तीन प्रकार के हैं–१. सिद्ध-सुगत, सिद्धसोगता, देवसुग्गता, सिद्धसुगताः, देवसुगताः, मनुष्यसुगताः। २. देव-सुगत, ३. मनुष्य-सुगत । मणुस्ससुग्गता। तव-पाणग-पदं तपः-पानक-पदम् तपः-पानक-पद ३७६. चउत्थभत्तियस्स णं भिक्खुस्स चतुर्थभक्तिकस्य भिक्षोः कल्पन्ते त्रीणि ३७६. चतुर्थभक्त [उपवास] वाला भिक्षु तीन कप्पंति तओ पाणगाइं पडिगा- पानकानि प्रतिग्रहीतुम्, तद्यथा प्रकार के पानक ग्रहण कर सकता हैहित्तए, तं जहा उत्स्वेदिम संसेकिमं तन्दुलधावनम् । १. उत्स्वेदिम-आटे का धोवन, उस्सेइमे संसेइमे चाउलधोवणे। २. संसेकिम-सिझाए हुए केर आदि का धोवन, ३. चावल का धोवन। ३७७. छट्ठभत्तियस्स णं भिक्खुस्स कप्पंति षष्ठभक्तिकस्य भिक्षोः कल्पन्ते त्रीणि ३७७. छट्ठभक्त [बेले की तपस्या] वाला भिक्षु तओ पाणगाई पडिगाहित्तए, तं पानकानि प्रतिग्रहीतुम्, तद्यथा- तीन प्रकार के पानक ले सकता हैजहातिलोदकं, तुषोदकं, यवोदकम् । १. तिलोदक, २. तुषोदक, ३. यवोदक ! तिलोदए, तुसोदए, जवोदए। ३७८. अट्ठमभत्तियस्स णं भिक्खुस्स अष्टमभक्तिकस्य भिक्षोः कल्पन्ते ३७८. अट्ठभक्त [तेले की तपस्या] वाला भिक्षु कप्पंति तओपाणगाइं पडिगाहित्तए, त्रीणि पानकानि प्रतिग्रहीतुम्, तद्यथा- तीन प्रकार के पानक ले सकता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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