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________________ स्थान ३ : सूत्र ३६७-३६६ ठाणं (स्थान) २२७ भविस्सइइच्चेएहि तिहि ठाणेहिं देवे उव्वेग- इति एतैः त्रिभिः स्थानैः देवः उद्वेगं मागच्छेज्जा। आगच्छेत् । इन तीन कारणों से देव उद्वेग को प्राप्त होता है। विमाण-पदं विमान-पदम् विमान-पद ३६७. तिसंठिया विमाणा पण्णत्ता, तं त्रिसंस्थितानि विमानानि प्रज्ञप्तानि, ३६७. विमान तीन प्रकार के संस्थान वाले होते जहा तद्यथावट्टा, तंसा, चउरसा। वृत्तानि, त्र्यस्राणि, चतुरस्राणि। १. वृत्त, २. त्रिकोण, ३. चतुष्कोण । १. तत्थ णं जे ते वट्टा विमाणा, १. तत्र यानि वृत्तानि विमानानि, तानि १. जो विमान वृत्त होते हैं वे पुष्करते णं पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिया पुष्करकणिकासंस्थानस्थितानि सर्वत: । कणिका [पद्म-मध्य-भाग] संस्थान से सव्वओ समंता पागार-परिक्खित्ता समन्नात् प्राकार-परिक्षिप्तानि एक- संस्थित होते हैं, सब दिशाओं और हुए एगदुवारा पण्णत्ता, द्वाराणि प्रज्ञप्तानि, विदिशाओं में चाहारदिवारी से घिरे होते हैं तथा उनके एक ही द्वार होता है। २. तत्थ णं जे ते तंसा विमाणा, २. तत्र यानि व्यस्राणि विमानानि, २. जो विमान त्रिकोण होते हैं, वे सिंघाड़े ते णं सिंघाडगसंठाणसंठिता तानि शगाटकसंस्थानसंस्थितानि द्वय- के संस्थान से संस्थित होते हैं, दो ओर से दुहतोपागार-परिक्खित्ता एगतो प्राकार-परिक्षिप्तानि एकतः वेदिका- चाहारदिवारी से घिरे हुए तथा एक वेइया-परिक्खित्ता तिदुवारा परिक्षिप्तानि त्रिद्वाराणि प्रज्ञप्तानि, ओर से वेदिका से घिरे हुए होते हैं तथा पण्णत्ता, उनके तीन द्वार होते हैं। ३. तत्थ णं जे ते चउरंसा ३. तत्र यानि चतुरस्राणि विमानानि, ३. जो विमान चतुष्कोण होते हैं, वे विमाणा, ते णं अक्खाडगसंठाण- तानि अक्षाटकसंस्थानसंस्थितानि सर्वतः अखाड़े के संस्थान से संस्थित होते हैं, संठिता सव्वतो समंता वेइया- समन्तात् वेदिका-परिक्षिप्तानि चतुर्दा- सब दिशाओं और विदिशाओं में वेदिकाओं परिक्खत्ता चउदुवारा पण्णत्ता। राणि प्रज्ञप्तानि । से घिरे हुए होते हैं तथा उनके चार द्वार होते हैं। ३६८. तिपतिट्ठिया विमाणा पण्णत्ता, तं त्रिप्रतिष्ठितानि विमानानि प्रज्ञप्तानि, ३६८. विमान त्रिप्रतिष्ठित होते हैंजहातद्यथा १. घनोदधि-प्रतिष्ठित, घणोदधिपतिट्टिता, घनोदधिप्रतिष्ठितानि, २. धनवात-प्रतिष्ठित, घणवातपइ द्विता। घनवातप्रतिष्ठितानि, ३. अवकाशांतर-[आकाश] प्रतिष्ठित । ओवासंतरपइ द्विता। अवकाशान्तरप्रतिष्ठितानि । ३६६. तिविधा विमाणा पण्णत्ता, तं त्रिविधानि विमानानि प्रज्ञप्तानि, ३६६. विमान तीन प्रकार के होते हैं तद्यथा अवस्थितानि, विकृतानि, १. अवस्थित-स्थायी बास के लिए, अवद्विता वेउविता, पारियानिकानि। २. विकृत-अस्थायी बास के लिए निर्मित पारिजाणिया। ३. पारियानिक-यात्रार्थ निर्मित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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