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________________ ठाणं (स्थान) ३५६. तिविहे अवयणे पण्णत्ते, तं जहा— गोतदण्णवयणे, णोतव्यणे, अवयणे । मण-पदं ३५७. तिविहे मणे पण्णत्ते, तं जहातम्मणे, तयण्णमणे, णोअमणे । ३५८. तिविहे अमणे पण्णत्ते, तं जहागोतम्मणे, णोतयण्णमणे, अमणे । वुट्ट पर्द ३५६. तिहि ठाणे अप्पट्टीकाए सिया, तं जहा - १. तस्सि च णं देसंसि वा पदेसंसि वाणो बहवे उदगजोणिया जीवा य पोग्गला य उदगत्ताते वक्कमंति विक्कमंति चयंति उववज्जंति, २. देवा णागा जक्खा भूता णो सम्ममाराहिता भवंति, तत्थ समुट्ठियं उदगपोग्गलं परिणतं वासितुकामं अण्णं देसं साहरंति, ३. अभवद्दलगं च णं समुट्ठितं परिणतं वासितुकामं वाउकाए विधुत २२२ त्रिविध अवचनं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा...नोतद्वचनं, नोतदन्यवचनं, अवचनम् । Jain Education International मनः-पदम् त्रिविधं मनः प्रज्ञप्तम्, तद्यथा--- तन्मनः, तदन्यमनः, नोअमनः । त्रिविधं अमनः प्रज्ञप्तम्, तद्यथानोतन्मनः, नोतदन्यमनः, अमनः । वृष्टि - पदम् त्रिभिः स्थानैः अल्पवृष्टिकायः स्यात्, तद्यथा— १ तस्मिंश्च देशे वा प्रदेशे वा नो बहवः उदकयोनिका जीवाश्च पुद्गलाश्च उदकतया अवक्रामन्ति व्युत्क्रामन्ति च्यवन्ते उपपद्यन्ते, २. देवाः नागाः यक्षाः भूताः नो सम्यगाराधिता भवन्ति तत्र समुत्थितं उदकपुद्गलं परिणतं वर्षितुकामं अन्यं देशं संहरन्ति, ३. अभ्रबार्दलकं च समुत्थितं परिणतं वर्षितुकामं वायुकायः विधुनाति इच्चेतेहि तिहि ठाणेह अप्पबुट्टि - इति एतैः त्रिभिः स्थान: अल्पवृष्टिकायः गाए सिया । स्यात् । For Private & Personal Use Only स्थान ३ : सूत्र ३५६-३५६ ३५६. अवचन तीन प्रकार का होता है १. नोतद्वचन - विवक्षित वस्तु का अकथन, २. नोतदन्यवचन- विवक्षित वस्तु से भिन्न वस्तु का कथन, ३. अवचन - वचन - निवृत्ति । मनः-पद ३५७. मन तीन प्रकार का होता है १. तन्मन - लक्ष्य में लगा हुआ मन, २. तदन्यमन - अलक्ष्य में लगा हुआ मन, ३. नोअमन-मन का लक्ष्य हीन व्यापार । ३५८. अमन तीन प्रकार का होता है १. नोतन्मन - लक्ष्य में नहीं लगा हुआ मन, २. नोतदन्यमन - लक्ष्य में लगा हुआ मन, ३. अमन-मन की अप्रवृत्ति । वृष्टि - पद ३५६. तीन कारणों से अल्प वृष्टि होती है १. किसी देश या प्रदेश में [ क्षेत्र या स्वभाव से ] पर्याप्त मात्रा में उदकयोनिक जीव और पुद्गलों के उदक रूप में उत्पन्न और नष्ट तथा नष्ट और उत्पन्न होने से । २. देव, नाग, यक्ष या भूत सम्यक् प्रकार से आराधित न होने पर उस देश में समुत्थित वर्षा में परिणत तथा बरसने ही वाले उदक- पुद्गलों [मेघों] का उनके द्वारा अन्य देश में संहरण होने से । ३. समुत्थित वर्षा में परिणत तथा बरसने ही वाले अभ्रवादलों के वायु द्वारा नष्ट होने से इन तीन कारणों से अल्प वृष्टि होती है । www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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