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________________ ठाणं (स्थान) २२१ स्थान ३ : सूत्र ३५०-३५५ ३. जघन्य-एक बार पीए उतना जल, तृण धान्य की कांजी या गर्म पानी। विसंभोग-पदं विसम्भोग-पदम् विसम्भोग-पद ३५०. तिहि ठाणेहि समणे णिग्गंथे त्रिभिः स्थानः श्रमणः निर्ग्रन्थः साधर्मिकं ३५०. तीन कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ अपने साहम्मियं संभोगियं विसंभोगियं साम्भोगिक वैसम्भोगिकं कुर्वन् सार्मिक, सांभोगिक को विसंभोगिक करेमाणे णातिक्कमति, तं जहा- नातिकामति, तद्यथा--- करता हुआ आज्ञा का अतिक्रमण नहीं सयं वा दटुं, सट्टयस्स वा णिसम्म स्वयं वा दृष्ट्वा, श्राद्धकस्य वा निशम्य, । करता--१. स्वयं किसी को सामाचारी तच्चं मोसं आउट्टति, चउत्थं णो तृतीयं मृषा आवर्तते, चतुर्थं नो के प्रतिकूल आचरण करते हुए देखकर, आउट्टति। आवर्तते। २. श्राद्ध [विश्वास पात्र] से सुनकर, ३. तीन बार मृषा-[अनाचार] का प्रायश्चित्त देने के बाद चौथी बार प्रायश्चित्त विहित नहीं होने के कारण। अणुण्णादि-पदं अनुज्ञादि-पदम् अनुज्ञआदि-पद ३५१. तिविधा अणुण्णा पण्णत्ता, तं त्रिविधा अनुज्ञा प्रज्ञप्ता, तद्यथा- ३५१. अनुज्ञा तीन प्रकार की होती हैजहा. आयरियत्ताए, आचार्यतया, उपाध्यायतया, गणितया। १. आचार्यत्व की, २. उपाध्यायत्व की, उवज्झायत्ताए, गणित्ताए। ३. गणित्व की। ३५२. तिविधा समणुण्णा पण्णत्ता, तं त्रिविधा समनुज्ञा प्रज्ञप्ता, तद्यथा- ३५२. समनुज्ञा तीन प्रकार की होती है जहा—आयरियत्ताए, आचार्यतया, उपाध्यायतया, गणितया। १. आचार्यत्व की, २. उपाध्यायत्व की, उवझायत्ताए, गणित्ताए। ३. गणित्व की। ३५३. 'तिविधा उवसंपया पण्णत्ता, तं त्रिविधा उपसंपदा प्रज्ञप्ता, तद्यथा- ३५३. उपसम्पदा तीन प्रकार की होती हैजहा.-आयरियत्ताए, आचार्यतया, उपाध्यायतया, गणितया। १. आचार्यत्व की, २. उपाध्यायत्व की, उवज्झायत्ताए, गणित्ताए। ३. गणित्व की। ३५४. तिविधा विजहणा पण्णत्ता, तं त्रिविधं विहानं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा- ३५४. विहान तीन प्रकार का होता है जहा—आयरियत्ताए, आचार्यतया, उपाध्यायतया, गणितया। १. आचार्यत्व का, २. उपाध्यायत्व का, उवज्झायत्ताए, गणित्ताए। ३. गणित्व का। वयण-पदं वचन-पदम् ३५५. तिविहे वयणे पण्णत्ते, तं जहा- त्रिविधं वचनं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा- तव्वयणे, तदण्णवयणे, णोअवयणे। तद्वचनं तदन्यवचनं नोअवचनम् । वचन-पद ३५५. वचन तीन प्रकार का होता है १. तद्वचन--विवक्षित वस्तु का कथन, २. तदन्यवचन-विवक्षित वस्तु से भिन्न वस्तु का कथन, ३. नोअवचन-शब्द का अर्थहीन व्यापार। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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