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ठाणं (स्थान)
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स्थान ३ : सूत्र ३४१-३४४ ३४१. तिहिं ठाणेहिं मायी मायं कटु- त्रिभिः स्थानैः मायी मायां कृत्वा- ३४१. तीन कारणों से मायावी माया करके
आलोएज्जा पडिक्कमेज्जा आलोचयेत् प्रतिकामेत् निन्देत् गर्हेत उसकी आलोचना, प्रतिक्रमण, निन्दा, 'णिदेज्जा गरिहेज्जा व्यावर्तेत विशोधयेत् अकरणतया गर्दा, व्यावर्तन तथा विशुद्धि करता है, विउद्देज्जा विसोहेज्जा अभ्यत्तिष्ठेत यथाऽहं प्रायश्चित्तं तपःकर्म फिर ऐसा नहीं करूंगा—ऐसा संकल्प अकरणयाए अब्भुट्ठज्जा प्रतिपद्येत, तद्यथा
करता है और यथोचित प्रायश्चित्त तथा अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म° मायिनः अयं लोकः गहितो भवति, तपःकर्म स्वीकार करता हैपडिवज्जेज्जा, तं जहा- उपपातः गहितो भवति,
मायावी का वर्तमान जीवन गहित हो माइस्स णं अस्सि लोगे गरहिए आजाति: गहिता भवति ।
जाता है, उपपात गहित हो जाता है, भवति,
आगामी जन्म [देवलोक या नरक के बाद उववाए गरहिए भवति,
होने वाला मनुष्य या तिर्यञ्च का जन्म] आयाती गरहिया भवति।
गहित हो जाता है। ३४२. तिहि ठार्गोह मायी मायं कटु- त्रिभिः स्थानः मायी मायां कृत्वा- ३४२. तीन कारणों से मायावी माया करके
आलोएज्जा 'पडिक्कमेज्जा आलोचयेत् प्रतिक्रामेत् निन्देत् गर्हेत उसकी आलोचना, प्रतिक्रमण, निन्दा, णिदेज्जा गरिहेज्जा
व्यावर्तेत विशोधयेत् अकरणतया गर्दा, व्यावर्तन तथा विशुद्धि करता है, विउद्देज्जा विसोहेज्जा अभ्युत्तिष्ठेत यथार्ह प्रायश्चित्तं तपःकर्म फिर ऐसा नहीं करूंगा-ऐसा संकल्प अकरणयाए अब्भुट्टेज्जा प्रतिपद्येत, तद्यथा
करता है और यथोचित प्रायश्चित्त तथा अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म अमायिन: अयं लोक: प्रशस्तो भवति, तपःकर्म स्वीकार करता हैपडिवज्जेज्जा, तं जहा_अमाइस्स उपपातः प्रशस्तो भवति,
ऋजु मनुष्य का वर्तमान जीवन प्रशस्त णं अस्सि लोगे पसत्थे भवति, आजातिः प्रशस्ता भवति ।
होता है, उपपात प्रशस्त होता है, उववाते पसत्थे भवति,
आगामी जन्म [देवलोक या नरक के बाद आयाती पसत्था भवति।
होने वाला मनुष्य जन्म प्रशस्त होता है। ३४३. तिहि ठाणेहि मायो मायं कटु- त्रिभिः स्थानः मायी मायां कृत्वा- ३४३. तीन कारणों से मायावी माया करके
आलोएज्जा 'पडिक्कमेज्जा आलोचयेत् प्रतिक्रामेत् निन्देत् गर्हेत उसकी आलोचना, प्रतिक्रमण, निन्दा, णिदेज्जा गरिहेज्जा व्यावर्तेत विशोधयेत् अकरणतया गर्दा, व्यावर्तन तथा विशुद्धि करता है, विउद्देज्जा विसोहेज्जा अभ्युत्तिष्ठेत यथाऽहं प्रायश्चित्तं तपःकर्म । फिर ऐसा नहीं करूंगा-ऐसा संकल्प अकरणयाए अब्भुट्ठज्जा प्रतिपद्येत, तद्यथा
करता है और यथोचित प्रायश्चित्त तथा अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म° ज्ञानार्थाय, दर्शनार्थाय, चरित्रार्थाय। तपःकर्म स्वीकार करता हैपडिवज्जेज्जा, तं जहा—णाणट्ठयाए,
ज्ञान के लिए, दर्शन के लिए, दंसणट्ठयाए, चरित्तट्ठयाए।
चरित्र के लिए।
सुयधर-पदं श्रुतधर-पदम्
श्रुतधर-पद ३४४. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं त्रीणि पुरुपजातानि प्रज्ञप्तानि, ३४४. पुरुष तीन प्रकार के होते हैंजहातद्यथा
१. सूत्रधर, २. अर्थधर, सुत्तधरे, अत्थधरे, तदुभयधरे। सूत्रधरः, अर्थधरः, तदुभयधरः । ३. तदुभय-सूत्रार्थधर।
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