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ठाणं (स्थान)
आलोयणा-पदं
३३८. तिहि ठाणेहिं मायी मायं कट्टु आलज्जा णो पक्कि मेज्जा जो णिज्जा णो गरिहेज्जा णो विउज्जाणो विसोहेज्जा जो अकरणयाए अन्भुटु ज्जा अहारिहं पाच्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, तं जहाaft वाहं, करेमि वाहं, करामि वाहं । ३३. तिहि ठाणेह मायी मायं कट्टु णो आलोएज्जा णो पडिक्कमेज्जा • णो णदेज्जा पो गरिहेज्जा णो विउज्जाणो विसोज्जा
अकरणयाए अभुट्टे जा णो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, तं जहा
अकित्ती वा मे सिया,
अवण्णे वा मे सिया, अfिare वा मे सिया.
३४०. तिहि ठाणेह मायी मायं कट्टुडिक्कमेज्जा
आज णो णिज्जा णो गरिहेज्जा णो विउट्टेज्जा णो विसोहेज्जा
अकरणयाए अन्भुट्ठेज्जा णो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, तं जहा - कित्ती वा मे परिहाइस्सति, जसे वा मे परिहाइस्सति, पूयासक्कारे वा मे परिहाइस्सति ।
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इओ उद्देस
आलोचना-पदम्
त्रिभिः स्थानैः मायी मायां कृत्वा - नोआलोचयेत् नो प्रतिक्रामेत् नो निन्देत् नोगत नो व्यावर्तेत नो विशोधयेत् नो अकरणतया अभ्युत्तिष्ठेत नो यथार्ह प्रायश्चित्तं तपः कर्म प्रतिपद्येत, तद्यथा
अकार्षं वाहं करोमि वाह, करिष्यामि वाहं ।
त्रिभिः स्थान: मायी मायां कृत्वानो आलोचयेत् नो प्रतिक्रामेत् नो निन्देत् नोगत नो व्यावर्तेत नो विशोधयेत् नोकरणतया अभ्युत्तिष्ठेत नो यथार्हं प्रायश्चित्तं तपः कर्म प्रतिपद्येत, तद्यथाअकीर्तिः वा मम स्यात्, अवर्णो वा मम स्यात्, अविनयो वा मम स्यात् ।
त्रिभिः स्थान: मायी मायां कृत्वा - नो आलोचयेत् नो प्रतिक्रामेत् नो निन्देत् नो गर्हेत नो व्यावर्तेत नो विशोधयेत् नो अकरणतया अभ्युत्तिष्ठेत नो यथार्हं प्रायश्चित्तं तपः कर्म प्रतिपद्येत, तद्यथा
कीर्तिः वा मम परिहास्यति, यशो वा मम परिहास्यति, पूजा सत्कारो वा मम परिहास्यति ।
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स्थान ३ : सूत्र ३३८-३४०
आलोचना-पद
३३८. तीन कारणों से मायावी माया करके उसकी आलोचना, प्रतिक्रमण, निन्दा, गर्हा, व्यावर्तन तथा विशुद्ध नहीं करता, फिर ऐसा नहीं करूंगा - ऐसा संकल्प नहीं करता और यथोचित प्रायश्चित्त तथा तपः कर्म स्वीकार नहीं करता -- मैंने अकरणीय किया है, मैं अकरणीय कर रहा हूं, मैं अकरणीय करूंगा |
३३. तीन कारणों से मायावी माया करके
उसकी आलोचना, प्रतिक्रमण, निन्दा, गर्हा, व्यावर्तन तथा विशुद्धि नहीं करता, फिर ऐसा नहीं करूंगा -- ऐसा संकल्प नहीं करता और यथोचित प्रायश्चित्त तथा तपः कर्म स्वीकार नहीं करतामेरी अकीर्ति होगी, मेरा अवर्ण होगा, दूसरों के द्वारा मेरा अविनय होगा ।
३४०. तीन कारणों से मायावी माया करके
उसकी आलोचना, प्रतिक्रमण, निन्दा, गर्हा, व्यावर्तन तथा विशुद्धि नहीं करता, फिर ऐसा नहीं करूंगा - ऐसा संकल्प नहीं करता और यथोचित प्रायश्चित्त तथा तपःकर्म स्वीकार नहीं करतामेरी कीर्ति कम होगी, मेरा यशः कम होगा, मेरा पूजा सत्कार कम होगा।
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