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________________ ठाणं (स्थान) २१३ स्थान ३ : सूत्र ३१४-३१८ ३१४. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं त्रीणि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ३१४. पुरुष तीन प्रकार के होते हैंजहातद्यथा १. कुछ पुरुष स्पर्श नहीं करूंगा इसलिए फासं ण फासिस्सामीतेगे सुमणे स्पर्श न स्प्रक्ष्यामीत्येकः सुमनाः भवति, सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष स्पर्श नहीं भवति, स्पर्श न स्प्रक्ष्यामीत्येकः दुर्मनाः भवति, करूंगा इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ फासं ण फासिस्सामीतेगे दुम्मणे स्पर्श न स्प्रक्ष्यामीत्येक: नोसुमना:- पुरुष स्पर्श नहीं करूंगा इसलिए न भवति, नोदुर्मना: भवति । सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। फासं ण फासिस्सामीतेगे णोसुमणेणोदुम्मणे भवति । गरहिअ-पदं गहित-पदम् गहित-पद ३१५. तओ ठाणा णिसोलस्स णिव्वयस्स त्रीणि स्थानानि निःशीलस्य निर्वतस्य ३१५. शील, व्रत, गुण, मर्यादा, प्रत्याख्यान और णिग्गुणस्स णिम्मेरस्स णिप्पच्च- निर्गुणस्य निर्मर्यादस्य निष्प्रत्याख्यान- पौषधोपवास से रहित पुरुष के तीन स्थान क्खाणपोसहोववासस्स गरहिता पोषधोपवासस्य गहितानि भवन्ति, गहित होते हैंभवंति, तं जहातद्यथा १. इहलोक [वर्तमान] गर्हित होता है, अस्सि लोगे गरहिते भवइ, अयं लोको गहितो भवति, २. उपपात देवलोक तथा नर्क का जन्म] उववाते गरहिते भवइ, उपपातो गहितो भवति, गहित होता है, ३. आगामी जन्म [देवआयाती गरहिता भवइ ।। आजाति: गहिता भवति । लोक या नरक के बाद होने वाला मनुष्य या तिर्यञ्च का जन्म] गहित होता है। पसत्थ-पदं प्रशस्त-पदम् प्रशस्त-पद ३१६. तओ ठाणा सुसीलस्स सुव्वयस्स त्रीणि स्थानानि सुशीलस्य सुव्रतस्य ३१६. शील, व्रत, गुण, मर्यादा, प्रत्याख्यान और सगुणस्स समेरस्स सपच्चक्खाण- सगुणस्य समर्यादस्य सप्रत्याख्यान- पौषधोपवास से युक्त पुरुष के तीन स्थान पोसहोववासस्स पसत्था भवंति, तं पोषधोपवासस्य प्रशस्तानि भवन्ति, प्रशस्त होते हैंजहातद्यथा १. इहलोक प्रशस्त होता है, २. उपपात अस्सि लोगे पसत्थे भवति, अयं लोकः प्रशस्तो भवति, प्रशस्त होता है, ३. आगामी जन्म [देवउववाए पसत्थे भवति, उपपातः प्रशस्तो भवति, लोक या नरक के बाद होने वाला मनुष्य आजाती पसत्था भवति। आजातिः प्रशस्ता भवति। जन्म] प्रशस्त होता है। जीव-पदं जीव-पदम् जीव-पद ३१७. तिविधा संसारसमावण्णगा जीवा विविधाः संसारसमापन्नकाः जीवाः ३१७. संसारी जीव तीन प्रकार के होते हैंपण्णत्ता, तं जहाप्रज्ञप्ताः, तद्यथा १. स्त्री, २. पुरुष, ३. नपुंसक। इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा। स्त्रियः, पुरुषाः, नपुंसकाः । ३१८. तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं त्रिविधाः सर्वजीवाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ३१८. सब जीव तीन प्रकार के होते हैं जहा—सम्मद्दिट्ठी, मिच्छाद्दिट्ठी, सम्यग्दृष्टयः, मिथ्यादृष्टयः, १. सम्यग्-दृष्टि, २. मिथ्या-दृष्टि, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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