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पहला स्थान
१. आदि-सूत्र
२८. प्रकीर्णक पद
६-१४. नौ तत्त्वों में से परस्पर प्रतिपक्षी छह तत्त्वों का
निर्देश
१५-१८. प्रकीर्णक पद
१९-२१. जीव की प्रवृत्ति के तीन स्रोत २२-२३. त्रिपदी के दो अंग
विषय-सूची
२४. चित्तवृत्ति
२५-२८. जीवों का भव-संसरण
२६-३२. ज्ञान के विविध पर्याय
३३. सामान्य अनुभूति
३४-३५. कर्मों की स्थिति का घात और विपाक का
मंदीकरण
३६. चरमशरीरी का मरण ३७. एकत्व का हेतु निर्लिप्तता
३८. जीव और दुःख का सम्बन्ध ३९-४०. अधर्म और धर्मं प्रतिमा
४१-४३. मन, वचन और काया की एक क्षणवर्तिता
४४. पुरुषार्थवाद का कथन
४५-४७. मोक्ष मार्ग का उल्लेख
४८-५०. तीन चरमसूक्ष्म
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२४८. जम्बूद्वीप का विवरण २४. महावीर का निर्वाण २५०. अनुत्तरोपपातिक देवों की ऊंचाई २५१-२५३. तीन नक्षत्र और उनके तारा २५४-२५६. पुद्गल-पद
१. द्विपदावतार पद
२ ३७. क्रियापद - प्राणी की मुख्य प्रवृत्तियों का संकलन ३८. गर्हा के प्रकार
३६. प्रत्याख्यान के प्रकार
४०. मोक्ष की उपलब्धि के दो साधन - विद्या और
दूसरा स्थान
चरण
४१-६२. आरंभ (हिंसा) और अपरिग्रह से अप्राप्य तथ्यों का निर्देश,
६३-७३. श्रुति और ज्ञान ( आत्मानुभव) से प्राप्त होने वाले तथ्यों का निर्देश
७४. कालचक्र
७५. उन्माद और उसका स्वरूप
७६-७८. अर्थ - अनर्थदंड
७६ -८५. सम्यग्दर्शन और मिथ्यादर्शन के विविध प्रकार ८६-६६. प्रत्यक्ष ज्ञान के प्रकार
१००-१०६. परोक्षज्ञान के प्रकार
५१-५४. कर्ममुक्त अवस्था की एकता
५५-६०. पुद्गल के लक्षण, कार्य, संस्थान और पर्याय का १०७ १०६. श्रुत और चारित्र धर्म के प्रकार
प्रतिपादन
११०-१२२. सराग और वीतराग संयम के प्रकार
१२३-१३७. पांच स्थावर जीव - निकायों का सूक्ष्म बादर, पर्याप्त अपर्याप्त तथा परिणत अपरिणत की अपेक्षा से वर्णन
१-१०८. अठारह पाप-स्थान
१०६ १२६. अठारह पाप-विरमण
१२७-१४०. अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी के विभाग
१४१-१६४. चौबीस दंडकों का कथन
१३८. द्रव्य पद
१६५ - १६६. चौबीस दण्डकों में भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक १३६ - १४३. पांच स्थावर - गतिसमापन्नक और अगति१७०-१८५. चौबीस दंडकों का दृष्टिविधान
१८६-१६०. चौबीस दंडकों में कृष्ण-शुक्लपक्ष की चर्चा ११-२१३. चौबीस दण्डकों में लेश्या
२१४-२२६. पन्द्रह प्रकार के सिद्ध
२३०-२४७. पुद्गल और स्कन्धों के विषय में विविध चर्चा
समापन्नक
१४४. द्रव्यपद
१४५-१४६. पांच स्थावर - अनंतरावगाढ़ और परंपरावगाढ़
१५०. द्रव्यपद १५१. काल
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