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इस प्रकार प्रस्तुत ग्रन्थ में अनेक साधुओं की पवित्र अंगुलियों का योग है। आचार्यश्री के वरदहस्त की छाया में बैठकर कार्य करने वाले हम सब संभागी हैं, फिर भी मैं उन सब साधु-साध्वियों के प्रति सद्भावना व्यक्त करता हूं, जिनका इस कार्य में योग है और आशा करता हूं कि वे इस महान कार्य के अग्रिम चरण में और अधिक दक्षता प्राप्त करेंगे।
आगमों के प्रबन्ध-सम्पादक श्री श्री चन्दजी रामपुरिया तथा स्वर्गीय श्री मदनचन्दजी गोठी का भी इस कार्य में निरन्तर सहयोग रहा है।
आदर्श साहित्य संघ के संचालक व व्यवस्थापक स्वर्गीय श्री हनतमलजी सुराना व जयचन्दलालजी दफ्तरी का भी अविरल योग रहा है। आदर्श साहित्य संघ की सहयुक्त सामग्री ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। एक लक्ष्य के लिए समान गति से चलने वालों की सम-प्रवृत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहार-पूर्ति मात्र है । वास्तव में यह हम सबका पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है।
आचार्यश्री प्रेरणा के अनन्त स्रोत हैं। हमें इस कार्य में उनकी प्रेरणा और प्रत्यक्ष योग दोनों प्राप्त हैं इसलिए हमारा कार्य-पथ बहुत ऋजु हुआ है। उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर मैं कार्य की गुरुता को बढ़ा नहीं पाऊँगा। उनका आशीर्वाद दीप बनकर हमारा कार्य-पथ प्रकाशित करता रहे, यही हमारी आशंसा है।
सुजानगढ़ २०३३ चैत्र महावीर जन्म-जयन्ती
-मुनि नथमल
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