SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठाणं (स्थान) स्थान ३ : सूत्र १७१-१७५ १७१. तिहिं जामेहिं आया केवलं मण- त्रिभिः यामैः आत्मा केवलं मनःपर्यवज्ञानं १७१. तीनों ही यामों में आत्मा विशुद्ध पज्जवणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा- उत्पादयेत्, तद्यथा--प्रथमे यामे, मनःपर्यवज्ञान को प्राप्त करता हैपढमे जामे, मज्झिमे जामे, मध्यमे याम, पश्चिमे यामे । १. प्रथम याम में, २. मध्यम याम में, पच्छिमे जामे। ३. पश्चिम याम में। १७२. तिहि जाहि आया केवलं केवल- त्रिभिः यामैः आत्मा केवलं केवलज्ञानं १७२. तीनों ही यामों में आत्मा विशुद्ध केवल णाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा- उत्पादयेत्, तद्यथा—प्रथम यामे, ज्ञान को प्राप्त करता हैपढमे जामे, मज्झिमे जामे, मध्यमे यामे, पश्चिमे यामे। १. प्रथम याम में, २. मध्यम याम में, पच्छिमे जामे। ३. पश्चिम याम में। वय-पदं वयः-पदम् वय-पद १७३. तओ वया पण्णत्ता, तं जहा- त्रीणि वयांसि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा- १७३. वय तीन हैं-१. प्रथम वय, पढमे वए, मज्झिमे वए, प्रथमं वयः, मध्यमं वयः, पश्चिमं वयः। २. मध्यम वय, ३. पश्चिम वय । पच्छिमे वए। १७४. तिहि वएहि आया केवलिपण्णत्तं त्रिभिः वयोभिः आत्मा केवलिप्रज्ञप्तं १७४. तीनों ही वयों में आत्मा केवली-प्रज्ञप्त धम्मं लभेज्ज सवणयाए, तं जहा- धर्म लभेत श्रवणतया, तद्यथा- धर्म का श्रवण-लाभ करता हैपढमे वए, मज्झिमे वए, प्रथमे वयसि, मध्यम वयसि, पश्चिमे १. प्रथम वय में, २. मध्यम वय में, पच्छिमे वए। वयसि। ३. पश्चिम वय में। १७५. 'तिहि वहि आया त्रिभिः वयोभिः आत्मा १७५. तीनों ही वयों में आत्मा विशुद्ध-बोधि का केवलं बोधिं बुज्झज्जा, केवलां बोधि बुध्येत, अनुभव करता हैकेवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ केवलं मुण्डो भूत्वा अगारात् अनगारितां मुण्ड होकर घर छोड़कर सम्पूर्ण अनगाअणगारियं पव्वइज्जा, प्रव्रजेत्, रिता-साधुपन को पाता है। केवलंबंभचेरवासमावसेज्जा, केवलं ब्रह्मचर्यवासमावसेत्, सम्पूर्ण ब्रह्मचर्यवास को प्राप्त करता है केवलेणं संजमेणं संजमज्जा, केवलेन संयमेन संयच्छेत्, सम्पूर्ण संयम के द्वारा संयत होता है केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा, केवलेन संवरेण संवृणुयात्, सम्पूर्ण संवर के द्वारा संवृत होता है केवलमाभिणिबोहियणाणं केवलमाभिनिबोधिकज्ञानं उत्पादयेत्, विशुद्ध आभिनिबोधिकज्ञान को प्राप्त उप्पाडेज्जा, केवलं श्रुतज्ञानं उत्पादयेत्, करता है केवलं सुयणाणं उप्पाडेज्जा, केवलं अवधिज्ञानं उत्पादयेत्, विशुद्ध श्रुतज्ञान को प्राप्त करता है केवलं ओहिणाणं उप्पाडेज्जा, केवलं मनःपर्यवज्ञानं उत्पादयेत्, विशुद्ध अवधिज्ञान को प्राप्त करता है केवलं मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा. केवलं केवलज्ञानं उत्पादयेत विशुद्ध मनःपर्यवज्ञान को प्राप्त करता है केवलं केवलणाणं उप्पाडेज्जा, तद्यथा_प्रथम वयसि, मध्यम वयसि, विशुद्ध केवलज्ञान को प्राप्त करता हैतं जहा...पढमे वए, पश्चिमे वयसि । १. प्रथम वय में, २. मध्यम वय में, मज्झिमे वए, पच्छिमे वए। ३. पश्चिम वय में। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy