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________________ ठाणं (स्थान) पढमे जामे मज्झिमे जामे, प्रथमे यामे, मध्यमे यामे, पश्चिमे यामे । पच्छिम जामे । १६३. तिहि जाहि आया केवलं बोधि बुझेज्जा, तं जहा — पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे । १६४. तिहि जामेहिं आया केवलं मुंडे भविता अगाराओ अणगारियं पव्वज्जा, तं जहा—पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे । १६५. तिहिं जामेहिं आया केवलं बंभचेर वासमावसेज्जा, तं जहापढमे जामे मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे । उप्पाडेज्जा, तं जहा पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे । १७०. तिहिं जामेहिं आया केवलं ओहि गाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा - पढमे जामे मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे । १८५ Jain Education International त्रिभिः यामैः आत्मा केवलां बोधि बुध्येत तद्यथा प्रथमे यामे, मध्यमे यामे, पश्चिमे यामे । त्रिभिः यामैः आत्मा केवलं मुण्डो भूत्वा अगारात् अनगारितां प्रव्रजेत् तद्यथा— प्रथमे यामे, मध्यमे यामे, पश्चिमे यामे । १६६. तिहि जामेहिं आया केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, तं जहा - पढमे जामे मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे । १६७. तिहिं जामेहिं आया केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा, तं जहापढमे जामे मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे । १६८. तिहि जामेहिं आया केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा— पढमे जामे मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे । १६६. तिहिं जामेहि आया केवलं सुयणाणं त्रिभिः यामैः आत्मा केवलं श्रुतज्ञानं उत्पादयेत्, तद्यथा—प्रथमे यामे, मध्यमे यामे, पश्चिमे यामे । त्रिभिः यामै: आत्मा केवलं ब्रह्मचर्य - वासमावसेत्, तद्यथा— प्रथमे यामे, मध्यमे यामे, पश्चिमे यामे । त्रिभिः यामै: आत्मा केवलेन संयमेन संयच्छेत्, तद्यथा—प्रथमे यामे, मध्यमे यामे, पश्चिमे यामे । त्रिभिः यामै: आत्मा केवलेन संवरेण संवृणुयात्, तद्यथा प्रथमे यामे, मध्यमे यामे, पश्चिमे यामे । त्रिभिः यामैः आत्मा केवलमाभिनिबोधिकज्ञानं उत्पादयेत्, तद्यथा— प्रथमे यामे, मध्यमे यामे, पश्चिमे यामे । त्रिभिः यामैः आत्मा केवल अवधिज्ञानं उत्पादयेत् तद्यथा प्रथमे यामे, मध्यमे यामे, पश्चिमे यामे । For Private & Personal Use Only स्थान ३ : सूत्र १६३-१७० १. प्रथम याम में २. मध्यम याम में, ३. पश्चिम याम में । १६३. तीनों ही यामों में आत्मा विशुद्ध बोधि लाभ करता है - १. प्रथम याम में, २. मध्यम याम में, ३ . पश्चिम याम में । १६४. तीनों ही यामों में आत्मा मुण्ड होकर अगार से विशुद्ध अनगारत्व में प्रव्रजित होता है - १. प्रथम याम में, २. मध्यम याम में, ३ . पश्चिम याम में । १६५. तीनों ही यामों में आत्मा विशुद्ध ब्रह्मचर्य वास करता है - १. प्रथम याम में, २. मध्यम याम में, ३. पश्चिम याम में । १६६. तीनों ही यामों में आत्मा विशुद्ध संयम से संयत होता है - १. प्रथम याम में, २. मध्यम याम में, ३ . पश्चिम याम में । १६७. तीनों ही यामों में आत्मा विशुद्ध संवर से संवृत होता है - १. प्रथम याम में, २. मध्यम याम में, ३ . पश्चिम याम में । १६८. तीनों ही यामों में आत्मा विशुद्ध आभिनिबोधिकज्ञान को प्राप्त करता है१. प्रथम याम में, २. मध्यम याम में, ३. पश्चिम याम में । १६६. तीनों ही यामों में आत्मा विशुद्ध श्रुतज्ञान को प्राप्त करता है - १. प्रथम याम में, २. मध्यम याम में, ३ . पश्चिम याम में । १७०. तीनों ही यामों में आत्मा विशुद्ध अवधिज्ञान को प्राप्त करता है१. प्रथम याम में, २. मध्यम याम में, ३. पश्चिम याम में । www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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