SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठाणं (स्थान) १८३ स्थान ३ : सूत्र १४६-१५७ १. समिता, २. चण्डा, ३. जाता। उसके लोकपालों तथा अग्रमहिषियों के भी तीन-तीन परिषदें हैं १. तुम्बा, २. त्रुटिता, ३. पर्वा । १४६. धरणस्स य सामाणिय-तावत्ती- धरणस्य च सामानिक-तावत्त्रिंशकानां १४६. नागेन्द्र, नागकुमारराज धरण तथा सगाणं च समिता, चंडा, जाता। च_समिता, चण्डा, जाता। उसके सामानिकों और तावत्तिज्ञाकों के तीन-तीन परिषदें हैं १. समिता, २. चण्डा, ३. जाता। १५०. लोगपालाणं अग्गमहिसीणं- लोकपालानां अग्रमहिषीणाम् १५०. नागेन्द्र, नागकुमारराज धरण के लोकईसा, तुडिया, दढरहा। ईषा, त्रुटिता, दृढरथा। पालों तथा अग्रमहिषियों के भी तीन-तीन परिषदें हैं १. ईषा, २. त्रुटिता, ३. दृढ़रथा। १५१. जहा धरणस्स तहा सेसाणं भवण- यथा धरणस्य तथा शेषाणां भवनवासि- १५१. शेष भवनवासी देवों का क्रम धरण की वासीणं । नाम् । तरह ही है। १५२.कालस्स णं पिसाडंदस्स पिसाय- कालस्य पिशाचेन्द्रस्य पिशाचराजस्य १५२. पिशाचेन्द्र, पिशाचराज काल के तीन रणो तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तिस्रः परिषदः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- परिषदें हैंतं जहा.-ईसा, तुडिया, दढरहा। ईषा, त्रुटिता, दृढ रथा। १. ईषा, २. त्रुटिता, ३. दृढ़रथा। १५३. एवं—सामाणिय-अग्गमहिसीणं। एवम् – सामानिकाऽग्रमहिषीणाम्। १५३. इसी प्रकार उनके सामानिकों और अग्र महिषियों के भी तीन-तीन परिषदें हैं १. ईषा, २. त्रुटिता, ३. दृढ़रथा। १५४. एवं—जाव गीयरतिगीयजसाणं। एवम्—यावत् गीतरतिगीतयशसोः। १५४. इसी प्रकार गंधर्वेन्द्र गीतरति और गीत यशा तक के सभी वानमन्तर देवेन्द्रों के तीन-तीन परिषदें हैं १. ईषा, २. त्रुटिता, ३. दृढ़रथा। १५५. चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिस- चन्द्रस्य ज्योतिरिन्द्रस्य ज्योतीराजस्य १५५. ज्योतिषेन्द्र, ज्यौतिषराज चन्द्र के तीन रणोतओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तिस्रः परिषद: प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- परिषदें हैंतं जहा—तुंबा, तुडिया, पव्वा। तुम्बा, त्रुटिता, पर्वा । १. तुम्बा, २. त्रुटिता, ३. पर्वा । १५६. एवं—सामाणिय-अग्गमहिसीणं। एवम् —सामानिकाऽग्रमहिषीणाम् । १५६. इसी प्रकार उसके सामानिकों तथा अग्र महिषियों के तीन-तीन परिषदें हैं १. तुम्बा, २. त्रुटिता, ३. पर्वा । १५७. एवं.-सूरस्सवि। एवम् —सूरस्यापि। १५७. ज्यौतिषेन्द्र, ज्योतिषराज सूर्य के तीन परिषदें हैं१. तुम्बा, २. त्रुटिता, ३. पर्वा । इसी प्रकार उसके सामानिकों तथा अग्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy