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________________ ठाणं (स्थान) स्थान ३: सूत्र १४०-१४८ १८२ बीओ उद्देसो लोग-पदं लोक-पदम् १४०. तिविहे लोगे पण्णत्ते, तं जहा- त्रिविधः लोकः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- णामलोगे, ठवणलोगे, दव्वलोगे। नामलोकः, स्थापनालोकः, द्रव्यलोकः। १४१. तिविहे लोगे पण्णत्ते, तं जहा- त्रिविधः लोकः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- णाणलोगे,दसणलोगे, चरित्तलोगे। ज्ञानलोकः, दर्शनलोकः, चरित्रलोकः । १४२. तिविहे लोगे पण्णत्ते, तं जहा- त्रिविधः लोकः प्रज्ञप्ता, तद्यथा- उड्डलोगे, अहोलोगे, तिरियलोगे। ऊर्ध्वलोकः, अधोलोकः, तिर्यग्लोकः। लोक-पद १४०. लोक तीन प्रकार का है—१. नामलोक, २. स्थापनालोक ३. द्रव्यलोक । १४१. लोक तीन प्रकार का है १. ज्ञानलोक, २. दर्शनलोक, चरित्रलोक। १४२. लोक तीन प्रकार का है-१. ऊर्ध्वलोक, २, अधोलोक, ३. तिर्यक्लोक । परिसा-पदं परिषद्-पदम् परिषद्-पद १४३. चमरस्स गं असुरिंदस्स असुर- चमरस्य असुरेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य १४३. असुरेन्द्र, असुरकुमारराज चमर के तीन कुमाररण्णो तओ परिसाओ तिस्रः परिषदः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- परिषदें"हैंपण्णत्ताओ, तं जहासमिता, चण्डा, जाता। १. समिता, २. चण्डा, ३. जाता। समिता, चंडा, जाया। आभ्यन्तरिकी समिता, आन्तरिक परिषद् का नाम समिता है, अभितरिता समिता, माध्यमिकी चण्डा, बाहिरिकी जाता। मध्यम परिषद् का नाम चण्डा है, मज्झिमिता चंडा, बाहिरिता बाह्य परिषद् का नाम जाता है । जाया। १४४. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुर- चमरस्य असुरेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य १४४. असुरेन्द्र, असुरकुमारराज चमर के सामा कमाररणो सामाणिताणं देवाणं सामानिकानां देवानां तिस्रः परिषदः निक देवों के तीन परिषदें हैंतओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं प्रज्ञप्ताः, तद्यथा १. समिता, २. चण्डा, ३. जाता। जहा–समिता जहेव चमरस्स। समिता यथैव चमरस्य । १४५. एवं तावत्तीसगाणवि। एवम् तावत्रिंशकानामपि। १४५. इसी प्रकार असुरेन्द्र, असुरकुमारराज चमर के तावत्त्रिंशकों के तीन परिषदें हैं-१. समिता, २. चण्डा, ३. जाता। १४६. लोगपालाणं तुंबा, तुडिया, लोकपालानाम्-तुम्बा, त्रुटिता, पर्वा । १४६. असुरेन्द्र, असुरकुमारराज चमर के लोकपवा। पालों के तीन परिषदें हैं १. तुम्बा, २. त्रुटिता, ३. पर्वा । १४७. एवं_अग्गमहिसीणवि। एवम् अग्रमहिषीणामपि । १४७. असुरेन्द्र, असुरकुमारराज चमर की अग्र महिषियों के तीन परिषदें हैं १. तुम्बा, २. त्रुटिता, ३. पर्वा । १४८. बलिस्सवि एवं चेव जाव अग्ग- बलिनोपि एवं चैव यावत अग्रमहिषी- १४८. वैरोचनेन्द्र, वैरोचनराज बली तथा उसके महिसीणं। णाम् । सामानिकों और तावत्तिशकों के तीनतीन परिषदें हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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