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स्थान ३ : सूत्र ८६-६३
ठाणं (स्थान)
१७३ चाउरतं संसारकतार वीईवएज्जा, चातुरन्तं संसारकान्तारं व्यतिव्रजेत् तं जहा—अणिदाणयाए, तद्यथा—अनिदानतया, दिदिसंपण्णयाए, जोगवाहियाए। दृष्टिसम्पन्नतया, योगवाहितया ।
कांतार से पार हो जाता है१. अनिदानता–भोग-प्राप्ति के लिए संकल्प नहीं करने से, २. दृष्टिसम्पन्नतासम्यग्दृष्टि से, ३. योगवाहिता योग का वहन करने या समाधिस्थ रहने से ।
कालचक्क-पदं कालचक्र-पदम्
कालचक्र-पद ८६.तिविहा ओसप्पिणी पण्णत्ता, तं त्रिविधा अवप्पिणी प्रज्ञप्ता, तदयथा- ८६. अवसर्पिणी तीन प्रकार की होती हैजहाउत्कर्षा, मध्यमा, जघन्या।
१. उत्कृष्ट, २. मध्यम, ३. जघन्य । उक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा। ६०. "तिविहा सुसम-सुसमा- त्रिविधा सुषम-सुषमा- ६०. सुषमसुषमा तीन प्रकार की होती हैतिविहा सुसमात्रिविधा सुषमा
सुषमा तीन प्रकार की होती हैतिविहा सुसम-दूसमात्रिविधा सुषम-दुष्षमा
सुषमदुष्षमा तीन प्रकार की होती हैतिविहा दूसभ-सुसमा- त्रिविधा दुष्षम-सुषमा
दुष्षमसुषमा तीन प्रकार की होती हैतिविहा दूसमात्रिविधा दुष्षमा
दुष्षमा तीन प्रकार की होती हैतिविहा इसम-दूसमा पण्णत्ता, त' त्रिविधा दुष्पम-दुष्षमा प्रज्ञप्ता, दुष्षमदुष्षमा तीन प्रकार की होती हैजहातद्यथा
१. उत्कृष्ट, २. मध्यम, ३. जघन्य । उक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा। उत्कर्षा, मध्यमा, जघन्या । ६१.तिविहा उस्सप्पिणी पण्णत्ता,तं त्रिविधा उत्सप्पिणी प्रज्ञप्ता,
६१. उत्सर्पिणी तीन प्रकार की होती हैजहातद्यथा
१. उत्कृष्ट, २. मध्यम, ३. जघन्य । उक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा।
उत्कर्षा, मध्यमा, जघन्या। ६२. °तिविहा दुस्सम-दुस्समा- त्रिविधा दुष्षम-दुष्षमा
६२. दुष्षमदुष्षमा तीन प्रकार की होती हैतिविहा दुस्समात्रिविधा दुष्षमा
दुष्षमा तीन प्रकार की होती हैतिविहा दुस्सम-सुसमा- त्रिविधा दुष्षम-सुषमा
दुष्षमसुषमा तीन प्रकार की होती हैतिविहा सुसम-दुस्समा- त्रिविधा सुषम-दुष्षमा
सुषमदुष्षमा तीन प्रकार की होती है-- तिविहा सुसमात्रिविधा सुषमा
सुषमा तीन प्रकार की होती हैतिविहा सुसम-सुसमा पण्णता, त्रिविधा सुषम-सुषमा प्रज्ञप्ता,
सुषमसुषमा तीन प्रकार की होती हैतं जहा
तद्यथा...उत्कर्षा, मध्यमा, जघन्या। १. उत्कृष्ट, २. मध्यम, ३. जघन्य । उक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा।
अच्छिण्ण-पोग्गल-चलण-पदं अच्छिन्न-पुद्गल-चलन-पदम् अच्छिन्न-पुद्गल-चलन-पद ६३. तिहि ठाणेहिं अच्छिण्णे पोग्गले त्रिभिः स्थानः अच्छिन्नः पुद्गलः चलेत्, ६३. अच्छिन्न पुद्गल [स्कंध संलग्न पुद्गल] चलेज्जा, तं जहा-
तद्यथा-आह्रियमाणो वा पुद्गल: चलेत्, तीन कारणों से चलित होता हैआहारिज्जमाणे वा पोग्गले विक्रियमाणो वा पुद्गलः चलेत्, १. जीवों द्वारा आकृष्ट होने पर चलित
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