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________________ ठाणं (स्थान) १७० स्थान ३ : सूत्र ८१-८५ 'तं जहा—अरहंतेहिं जायमाहिं, अर्हत्सु जायमानेषु, अर्हत्सु प्रव्रजत्सु, २. अर्हन्तों के प्रव्रजित होने के अवसर अरहंतेहि पन्वयमाणेहि, अर्हतां ज्ञानोत्पादमहिमसु। पर, ३. अर्हन्तों को केवलज्ञान उत्पन्न अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु ।' होने के उपलक्ष्य में किए जाने वाले महोत्सव पर। ८१. तिहि ठाणेहि देवा अब्भुट्ठिज्जा, तं त्रिभिः स्थानैः देवाः अभ्युत्तिष्ठेयुः, ८१. तीन कारणों से देव अपने सिंहासन से जहा—अरहंतेहिं जायमाणेहि, तद्यथा-अर्हत्सु जायमानेषु, अभ्युत्थित होते हैं-१. अर्हन्तों का जन्म 'अरहंतेहिं पव्वयमाहिं, अर्हत्सु प्रव्रजत्सु, होने पर, २. अर्हन्तों के प्रव्रजित होने के अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु। अर्हतां ज्ञानोत्पादमहिमासु । अवसर पर, ३. अर्हन्तों को केवलज्ञान उत्पन्न होने के उपलक्ष्य में किए जाने वाले महोत्सव पर। ८२. 'तिहिं ठाणेहि देवाणं आसणाई त्रिभिः स्थानः देवानां आसनानि चलेयुः, ८२. तीन कारणों से देवों के आसन चलित चलेज्जा, तं जहा तद्यथा—अर्हत्सु जायमानेषु, होते हैं-१. अर्हन्तों का जन्म होने पर, अरहंतेहिं जायमार्गोह, अर्हत्सु प्रव्रजत्सु, २. अर्हन्तों के प्रवजित होने के अवसर अरहंतेहि पव्वयमाहि, अर्हतां ज्ञानोत्पादमहिमसु । पर, ३. अर्हन्तों को केवलज्ञान उत्पन्न अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु । होने के उपलक्ष्य में किए जाने वाले महोत्सव पर। ८३. तिहिं ठाणेहिं देवा सीहणायं त्रिभिः स्थान: देवाः सिंहनादं कुर्यः, ८३. तीन कारणों से देव सिंहनाद करते हैंकरेज्जा, तं जहा- तद्यथा-अर्हत्सु जायमानेषु, १. अर्हन्तों का जन्म होने पर, अरहतेहि जायमाणेहि, अर्हत्सु प्रव्रजत्सु, २. अर्हन्तों के प्रवजित होने के अवसर अरहंतेहि पव्वयमाहि, अर्हतां ज्ञानोत्पादमहिमसु । पर, ३. अर्हन्तों को केवलज्ञान उत्पन्न अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु । होने के उपलक्ष्य में किए जाने वाले महोत्सव पर। ८४. तिहिं ठाणेहि देवा चेलुक्खेवं त्रिभिः स्थानैः देवाः चेलोतक्षेपं कुर्यः, ८४. तीन कारणों से देव चलोत्क्षेप करते हैंकरेज्जा, तं जहा तद्यथा-अर्हत्सु जायमानेषु, १. अर्हन्तों का जन्म होने पर, अरहंतेहि जायमाणेहि, २. अर्हन्तों के प्रवजित होने के अवसर अरहंतेहि पव्वयमाहि, अर्हतां ज्ञानोत्पादमहिमसु । पर, ३. अर्हन्तों को केवलज्ञान उत्पन्न अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु। होने के उपलक्ष्य में किए जाने वाले महोत्सव पर। ८५. तिहि ठाणेहि देवाणं चेइयरुक्खा त्रिभिः स्थानः देवानां चैत्यरुक्षाः ८५. तीन कारणों से देवताओं के चैत्यवृक्ष चलेज्जा, तं जहा चलेयुः तद्यथा...अर्हत्सु जायमानेषु, । चलित होते हैं-१. अर्हन्तों का जन्म होने अरहंतेहिं 'जायमाणेहि, अर्हत्सु प्रव्रजत्सु, पर, २. अर्हन्तों के प्रवृजित होने के अवसर अरहंतेहिं पव्वयमार्गोह, अर्हतां ज्ञानोत्पादमहिमसु। पर, ३. अर्हन्तों को केवलज्ञान उत्पन्न अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु। होने के उपलक्ष्य में किए जाने वाले महोत्सव पर। अहेत्स प्रतज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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