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________________ ठाणं (स्थान) १६८ स्थान ३ : सूत्र ७०-७४ देवविक्किया-पदं देवविक्रिया-पदम् देवविक्रिया-पद ७०. तिहि ठाणेहि देवे विज्जुयारं त्रिभिः स्थानैः देवः विद्युत्कारं कुर्यात्, ७०. तीन कारणों से देव विद्युत्कार (विद्युत् करेज्जा, तं जहा—विकुव्वमाणे वा, तद्यथा-विकुर्वाणे वा, परिचारयमाणे प्रकाश) करते हैंपरियारेमाणे वा, वा, तथारूपस्य श्रमणस्य वा महानस्य १. वैक्रिय रूप करते हुए, २. परिचारणा तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा ऋद्धि द्युतिं यशः बलं वीर्यं पुरुष- करते हुए, ३. तथारूप श्रमण माहन के वा इंड्डि जुति जस बलं वीरियं कारपराक्रमं उपदर्शयमानः-देवः । सामने अपनी ऋद्धि, द्युति, यश, बल, पुरिसक्कारपरक्कम उवदंसेमाणे- विद्युत्कारं कुर्यात् । वीर्य, पुरुषकार और पराक्रम का उपदेवे विज्जुयारं करेज्जा। दर्शन करते हुए। ७१. तिहि ठाणेहि देवे थणियसदं त्रिभिः स्थानः देवः स्तनितशब्दं कुर्यात्, ७१. तीन कारणों से देव गर्जारव करते हैंकरेज्जा, तं जहा-विकुव्वमाणे वा, तद्यथा-विकुर्वाणे वा, १.वैक्रिय रूप करते हुए, २. परिचारणा 'परियारेमाणे वा, परिचारयमाणे वा, करते हुए, ३. तथारूप श्रमण माहन के तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स तथारूपस्य श्रमणस्य वा महानस्य वा सामने अपनी ऋद्धि, द्युति, यश, बल, वा इंड्डि जुति जसं बलं वीरियं ऋद्धि द्युति यशः बलं वीर्यं पुरुषकार- वीर्य, पुरुषकार और पराक्रम का उपपुरिसक्कारपरक्कम उवदंसेमाणे- पराक्रम उपदर्शयमान: दर्शन करते हुए। देवे थणियसदं करेज्जा। देवः स्तनितशब्दं कुर्यात् । अंधयार-उज्जोयाइ-पदं अन्धकार-उद्योतादि-पदम् अन्धकार-उद्योतआदि-पद ७२. तिहिं ठाणेहिं लोगंधयारे सिया, तं त्रिभिः स्थानः लोकान्धकारं स्यात्, ७२. तीन कारणों से मनुष्यलोक में अंधकार जहा तद्यथा-अर्हत्सु व्यवच्छिद्यमानेषु, __ होता हैअरहतेहि वोच्छिज्जमाणेहि, अर्हत्प्रज्ञप्ते धर्मे व्यवच्छिद्यमाने, १. अर्हन्तों के व्युच्छिन्न (मुक्त) होने पर, अरहंतपण्णत्ते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, पूर्वगते व्यवच्छिद्यमाने। २. अर्हत्प्रज्ञप्त धर्म के व्युच्छिन्न होने पर, पुव्वगते वोच्छिज्जमाणे। ३. पूर्वगत (चतुर्दश पूर्वो) के व्युच्छिन्न होने पर। ७३. तिहिं ठाणेहि लोगुज्जोते सिया, तं त्रिभिः स्थानः लोकोद्योतः स्यात्, ७३. तीन कारणों से मनुष्यलोक में उद्योत जहा—अरहतेहिं जायमाणेहि, तद्यथा-अर्हत्सु जायमानेषु, होता है-१. अर्हन्तों का जन्म होने पर, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहि, अर्हत्सु प्रवजत्सु, अर्हतां ज्ञानोत्पाद- २. अर्हन्तों के प्रवजित होने के अवसर पर, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु। महिमसु । ३. अर्हन्तों को केवलज्ञान उत्पन्न होने के उपलक्ष में किए जाने वाले महोत्सव पर। ७४. तिहि ठाणेहि देवंधकारे सिया, तं त्रिभिः स्थान: देवान्धकारं स्यात्, ७४. तीन कारणों से देवलोक में अंधकार जहा-अरहंतेहि वोच्छिज्जमाणेहि, तद्यथा—अर्हत्सु व्यच्छिद्यमानेषु, होता है-१. अर्हन्तों के ब्युच्छिन्न होने पर, अरहंतपण्णत्ते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, अर्हत्प्रज्ञप्ते धर्मे व्यवच्छिद्यमाने, २. अर्हत्-प्रज्ञप्त धर्म के व्युच्छिन्न होने पुत्वगते वोच्छिज्जमाणे। पूर्वगते व्यवच्छिद्यमाने। पर, ३. पूर्वगत का विच्छेद होने पर। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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