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ठाणं (स्थान)
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स्थान ३ : सूत्र ६२-६६ ६२. तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं । दि- तेजस्कायिकानां वायुकायिकानां ६२. तेजस्कायिक", वायुकायिक, द्वीन्द्रिय,
याणं तेंदियाणं चरिदिआणवि द्वीन्द्रियाणां त्रीन्द्रियाणां चतुरिन्द्रि- त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में तीन तओ लेस्सा, जहा णेरइयाणं। याणामपि तिस्रः लेश्याः, यथा नैर- लेश्याएं होती हैं--१. कृष्णलेश्या, यिकाणाम् ।
२. नीललेश्या, ३. कापोतलेश्या। ६३. पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं तओ पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां तिस्रः ६३. पंचेन्द्रियतिर्यक्योनिक जीवों के तीन
लेसाओ संकिलिट्ठाओ पण्णत्ताओ, लेश्याः संक्लिष्टाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- लेश्याएं संक्लिष्ट होती हैंतं जहा
कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या। १. कृष्णलेश्या, २. नीललेश्या, कण्हलेसा, गोललेसा, काउलेसा।
३. कापोतलेश्या। ६४. पाँचदियतिरिक्खजोणियाणं तओ पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां तिस्रः ६४. पंचेन्द्रियतिर्यक्योनिक जीवों के तीन
लेसाओ असंकिलिट्ठाओ लेश्याः असंक्लिष्टाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- लेश्याएं असंक्लिष्ट होती हैंपण्णत्ताओ, तं जहा. तेउलेसा, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या, शुक्ललेश्या। १. तेजोलेश्या, २. पद्मलेश्या, पम्हलेसा, सुक्कलेसा।
३. शुक्ललेश्या। ६५. 'मणुस्साणं तओ लेसाओ मनुष्याणां तिस्रः लेश्याः संक्लिष्टा: ६५. मनुष्यों के तीन लेश्याएं संक्लिष्ट होती
संकिलिट्ठाओ पण्णत्ताओ, तं जहा– प्रज्ञप्ताः, तद्यथा—कृष्णलेश्या, नील- हैं-१. कृष्णलेश्या, २. नीललेश्या, कण्हलेसा, णीललेसा, काउलेसा। लेश्या, कापोतलेश्या।
३. कापोतलेश्या। ६६. मणुस्साणं तओ लेसाओ असंकि- मनुष्याणां तिस्रः लेश्या: असंक्लिष्टाः ६६. मनुष्यों के तीन लेश्याएं असंक्लिष्ट होती लिट्ठाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- प्रज्ञप्ताः, तद्यथा
हैं-१. तेजोलेश्या, २. पद्मलेश्या, तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा। तेजोलेश्या, पद्मलेश्या, शुक्ललेश्या। ३. शुक्ललेश्या।
६७. वाणमंतराणं जहा असुरकुमाराणं। वानमन्तराणां यथा असुरकुमाराणाम् । ६७. वानमंतरों के तीन लेश्याएं संक्लिष्ट
होती हैं-१. कृष्णलेश्या, २. नीललेश्या,
कापोतलेश्या। ६८. वेमाणियाणं तओ लेस्साओ वैमानिकानां तिस्रः लेश्याः प्रज्ञप्ताः, ६८. वैमानिक देवों के तीन लेश्याएं होती हैंपण्णत्ताओ, तं जहा तेउलेसा, तद्यथा
१. तेजोलेश्या, २. पद्मलेश्या, पम्हलेसा, सुक्कलेसा। तेजोलेश्या, पद्मलेश्या, शुक्ललेश्या। ३. शुक्ललेश्या ।
तारारूव-चलण-पदं तारारूप-चलन-पदम्
तारारूप-चलन-पद ६९. तिहिं ठाणेहिं तारारूवे चलेज्जा, त्रिभिः स्थानैः तारारूपं चलेत, तद्यथा- ६६. तीन कारणों से तारा चलित होते हैं
तं जहा—विकुब्वमाणे वा, विकुर्वाणं वा, परिचारयमाणं वा, १. वैक्रिय रूप करते हुए, २. परिचारणा परियारेमाणे वा,
स्थानाद् वा स्थानं संक्रमत-तारारूपं करते हुए, ३. एक स्थान से दूसरे स्थान ठाणाओ वा ठाणं संकममाणे- चलेत् ।
में संक्रमण करते हुए। तारारूवे चलेज्जा।
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