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________________ ठाणं (स्थान) दंड-पदं २४. तओ दंडा पण्णत्ता, तं जहा-मणदंडे, वइदंडे, कायदंडे । २५. रइयाणं तओ दंडा पण्णत्ता, तं जहा-मणदंडे, वइदंडे, कायदंडे । विदियवज्जं जाव वेमाणियाणं दण्डः, वाग्दण्डः, कायदण्डः । नैरयिकाणां त्रयो दण्डाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - मनोदण्डः, वाग्दण्डः, कायदण्डः । । विकलेन्द्रियवर्जं यावत् वैमानिकानाम् । अहवा गरहा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा दीपेगे अद्धं गरहति, रहस्पेगे अद्धं गरहति, कार्यपेगे पडिसाहरति पावाणं कम्माणं अकरणयाए । गरहा-पदं गर्हा-पदम् २६. तिविहा गरहा पण्णत्ता, तं जहा— त्रिविधा गर्दा प्रज्ञप्ता, तद्यथा— मनसा वा एकः गर्हते, सा वेगे रहत वयसा वेगे गरहति, वचसा वा एकः गर्हते, कायसा वेगे गरहति – पावाणं कायेन वा एकः गर्हते पापानां कर्मणां कम्माणं अकरणयाए । अकरणतया । अथवा गर्दा त्रिविधा प्रज्ञप्ता, पच्चक्खाण-पदं २७. तिविहे पच्चक्खाणे पण्णत्ते, तं जहा - माणसा वेगे पच्चक्खाति, वयसा वेगे पच्चक्खाति, कायसा वेगे पच्चक्खाति● पावाणं कम्माणं अकरणयाए । अहवा_पच्चक्खाणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहादीपेगे अर्द्ध पच्चक्खाति, १६२ Jain Education International दण्ड-पदम् दण्ड- पद यो दण्डाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा मनो- २४. दण्ड तीन प्रकार का है तद्यथा— दीर्घमप्येकः अद्ध्वानं गर्हते, ह्रस्वमप्येकः अद्ध्वानं गर्हते, कायमप्येकः प्रतिसंहरति — पापानां कर्मणां अकरणतया । प्रत्याख्यान-पदम् त्रिविधं प्रत्याख्यानं प्रज्ञप्तम्, तद्यथामनसा वैकः प्रत्याख्याति, रहस्संपेगे अद्धं पच्चक्खाति, कायंपेगे पडिसाहरति — पावाणं कायमप्येकः वचसा वैकः प्रत्याख्याति, कायेन वैकः प्रत्याख्याति पापानां कर्मणां अकरणतया । अथवा — प्रत्याख्यानं त्रिविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा दीर्घमप्येकः अद्ध्वानं प्रत्याख्याति, ह्रस्वमप्येकः अद्ध्वानं प्रत्याख्याति, प्रतिसंहरतिपापानां स्थान ३ : सूत्र २४ -२७ For Private & Personal Use Only १२ १. मनोदंड, २. वचनदंड, ३ . कायदंड । " २५. नैरयिकों में तीन दण्ड होते हैं १. मनोदण्ड, २. वचनदण्ड, ३. कायदण्ड । विकलेन्द्रिय (एक, दो, तीन, चार इन्द्रिय वाले) जीवों को छोड़कर वैमानिक देवों तक के सभी दण्डकों में तीनों ही दण्ड होते हैं । ग-पद २६. गर्हा तीन प्रकार की है— १. कुछ लोग मन से गर्दा करते हैं, २. कुछ लोग वचन से गर्हा करते हैं, ३. कुछ लोग काया से गर्दा करते हैं, दुबारा पाप कर्मों में प्रवृत्ति नहीं करते । अथवा गर्हा तीन प्रकार की है १. कुछ लोग दीर्घकाल तक पाप कर्मों से ग करते हैं, २. कुछ लोग अल्पकाल तक पाप कर्मों से गर्हा करते हैं, ३. कुछ लोग काया को प्रति संहत ( संवृत ) करते हैं, दुबारा पाप कर्मों में प्रवृत्ति नहीं करते । " प्रत्याख्यान - पद २७. प्रत्याख्यान (त्याग) तीन प्रकार का है१. कुछ जीव मन से प्रत्याख्यान करते हैं, २. कुछ जीव वचन से प्रत्याख्यान करते हैं, ३. कुछ जीव काया से प्रत्याख्यान करते हैं, दुबारा पाप कर्मों में प्रवृत्ति नहीं करते । अथवा प्रत्याख्यान तीन प्रकार का है१. कुछ जीव दीर्घकाल तक पाप कर्मों का प्रत्याख्यान करते हैं, २. कुछ जीव अल्पकाल तक पाप कर्मों का प्रत्याख्यान करते हैं, ३. कुछ जीव काया को प्रतिसंहृत www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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