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________________ ठाणं (स्थान) १५६ स्थान ३ : सूत्र १०-१५ करते हैं। अप्पाणमेव अप्पणा विउव्विय- परिचारयति । विउब्विय परियारेति। ३. एगे देवे णो अण्णे देवे, णो ३. एको देवः नो अन्यान् देवान, नो अण्णेसि देवाणं देवीओ अभि- अन्येषां देवानां देवी: अभियुज्यजुंजिय-अभिमुंजिय परियारेति, अभियुज्य परिचारयति, नो आत्मीया णो अप्पणिज्जिताओ देवीओ देवीः अभियुज्य-अभियुज्य अभिमुंजिय-अभिमुंजिय परिया- परिचारयति, आत्मानमेव आत्मना रेति, अप्पाणमेव अप्पाणं विकृत्य-विकृत्य परिचारयति । विउविय-विउन्विय परियारेति । ३. कुछ देव अन्य देवों तथा अन्य देवों की देवियों से आश्लेष कर-कर परिचारणा नहीं करते, अपनी देवियों का भी आश्लेष कर-कर परिचारणा नहीं करते, केवल अपने बनाये हुए विभिन्न रूपों से परिचारणा करते हैं। मेहुण-पदं मैथुन-पदम् मैथुन-पद १०. तिविहे मेहुणे पण्णत्ते, तं जहा- त्रिविधं मैथुनं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा- १०. मैथुन तीन प्रकार का है दिवे, माणुस्सए, तिरिक्खजोणिए। दिव्यं, मानुष्यक, तिर्यग्योनिकम्।। १. दिव्य, २. मानुष्य, ३. तिर्यक्योनिक। ११. तओ मेहुणं गच्छंति, तं जहा- त्रयो मैथुनं गच्छन्ति, तद्यथा- ११. तीन मैथुन को प्राप्त करते हैं देवा, मणुस्सा, तिरिक्खजोणिया। देवाः, मनुष्याः, तिर्यग्योनिका: । १. देव, २. मनुष्य, ३. तिर्यञ्च। १२. तओ मेहुणं सेवंति, तं जहा- त्रयो मैथुनं सेवन्ते, तद्यथा- १२. तीन मैथुन को सेवन करते हैंइत्थी, पुरिसा, णपुंसगा। स्त्रियः, पुरुषाः, नपुंसकाः। १. स्त्री, २. पुरुष, ३. नपुंसक। जोग-पदं योग-पदम् योग-पद १३. तिविहे जोगे पणत्ते, तं जहा- त्रिविधो योगः प्रज्ञप्तः, तद्यथा.... १३. योग' तीन प्रकार का है-- मणजोगे, वइजोगे, कायजोगे। मनोयोगः, वाग्योगः, काययोगः। १. मनोयोग, २. वचनयोग, ३. काययोग। एवं_णेरइयाणं विलिदिय- एवम_नैरयिकाणां विकलेन्द्रिय- विकलेन्द्रियों (एक, दो, तीन, चार इन्द्रियों वज्जाणं जाव वेमाणियाणं। वर्जानां यावत् वैमानिकानाम् । वाले जीवों) को छोड़कर शेष सभी दण्डकों में तीनों ही योग होते हैं। १४. तिविहे पओगे पण्णत्ते, तं जहा- त्रिविधः प्रयोगः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- १४. प्रयोग तीन प्रकार का है मणपओगे, वइपओगे, कायपओगे। मनःप्रयोगः, वाक्प्रयोग, कायप्रयोगः । १. मनःप्रयोग, २. वचनप्रयोग, जहा जोगो विलिदियवज्जाणं यथा योगो विकलेन्द्रियवर्जानां यावत् ३. कायप्रयोग। जाव तहा पओगोवि। तथा प्रयोगोऽपि। विकलेन्द्रियों (एक, दो, तीन, चार इन्द्रियों वाले जीवों) को छोड़कर शेष सभी दण्डकों में तीनों ही प्रयोग होते हैं। करण-पदं करण-पदम् करण-पद १५. तिविहे करणे पण्णत्ते, तं जहा- त्रिविधं करणं प्रज्ञप्तम् तद्यथा- १५. करण तीन प्रकार का है मणकरणे, वइकरणे, कायकरणे। मनःकरणं, वाक्करणं, कायकरणम् । १. मनःकरण, २. वचनकरण,३. कायकरण। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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