________________
ठाणं (स्थान)
१५८
जहा --
६. तिविहा विकुव्वणा पण्णत्ता, तं त्रिविधं विकरणं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा— बाह्याभ्यन्तरिकान् पुद्गलान् पर्यादाय एकं विकरणम्, बाह्याभ्यन्तरिकान् पुद्गलान् अपर्यादाय एकं विकरणम्, बाह्याभ्यन्तरिकान् पुद्गलान् पर्यादायापि अपर्यादायापिएक
बाहिर अंतरए पोग्गले परियादत्ताएगा विकुव्वा, बाहिर अंतरए पोग्गले अपरियादित्ता - एगा विकुव्वा, बाहिर भंतरए पोग्गले परियादित्तावि अपरियादित्तावि एगा
विकरणम् ।
विकुव्वणा ।
संचित-पदं
संचित-पदम्
७. तिविहा णेरइया पण्णत्ता, तं त्रिविधाः नैरयिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा
जहा
कतिसंचिताः,
अकतिसंचिताः,
अवक्तव्यकसंचिताः ।
कतिसंचिता,
अवत्तव्वगसंचिता ।
८. एवमेगिदियवज्जा जाव वेमा - एवमेकन्द्रियवर्जाः यावत् वैमानिकाः ।
णिया ।
अतिसंचिता,
परियारणा-पदं
परिचारणा पण्णत्ता,
६. तिविहा परियारणा पण्णत्ता, तं त्रिविधा जहा --
तद्यथा—
१. एको देवः अन्यान् देवान्, अन्येषां देवानां देवीश्च अभियुज्य अभियुज्य परिचारयति, आत्मीया देवी: अभियुज्य अभियुज्य परिचारयति आत्मानमेव आत्मना विकृत्य - विकृत्य परिचारयति ।
१. एगे देवे अण्णे देवे, अण्णास देवाणं देवीओ अ अभिजुंजियअभिजुंजिय परियारेति, अप्पणिज्जिआओ देवीओ अभिजुंजिय- अभिजुंजिय परियारेति, अप्पाणमेव अप्पणा विउब्विय विउब्विय परियारेति । २. एगे देवे णो अण्णे देवे, णो अण्णास देवाणं देवीओ अभिजुंजिय- अभिजुंजिय परियारेति, अपणिज्जिआओ देवीओ अभिजुंजिय- अभिजुंजिय परियारेइ,
Jain Education International
परिचारणा-पदम्
२. एको देवः नो अन्यान् देवान्, नो अन्येषां देवानां देवी: अभियुज्यअभियुज्य परिचारयति, आत्मीया देवीः अभियुज्य अभियुज्य परिचारयति, आत्मानमेव आत्मना विकृत्य-विकृत्य
For Private & Personal Use Only
स्थान ६ : सूत्र ६-६
६. विक्रिया तीन प्रकार की होती है१. बाह्य और आन्तरिक दोनों प्रकार के पुद्गलों को ग्रहण कर की जाने वाली, २. बाह्य और आन्तरिक दोनों प्रकार के पुद्गलों को ग्रहण किए बिना की जाने वाली,
३. बाह्य और आन्तरिक दोनों प्रकार के पुद्गलों के ग्रहण और अग्रहण के द्वारा की जाने वाली ।
संचित पद
७. नैरयिक तीन प्रकार के हैं
१. कतिसंचित -- संख्यात,
२. अकतिसंचित -- असंख्यात,
३. अवक्तव्य संचित - एक । '
८. इसी प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिक देवों तक के सभी दण्डकों के तीनतीन प्रकार हैं।
परिचारणा- पद
2. परिचारणा तीन प्रकार की है
९. कुछ देव अन्य देवों तथा अन्य देवों की देवियों का आश्लेष कर-कर परिचारणा करते हैं, कुछ देव अपनी देवियों का आश्लेष कर-कर परिचारणा करते हैं, कुछ देव अपने बनाये हुए विभिन्न रूपों से परिचारणा करते हैं ।
२. कुछ देव अन्य देवों तथा अन्य देवों की देवियों का आश्लेष कर-कर परिचारणा नहीं करते, अपनी देवियों का आश्लेष कर-कर परिचारणा करते हैं, अपने बनाये हुए विभिन्न रूपों से परिचारणा
www.jainelibrary.org