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________________ तइयं ठाणं : पढमो उद्देसो मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद इंद-पदं १. तओ इंदा पण्णत्ता, तं जहा णामिदे, ठवणिदे, दविदे। इन्द्र-पदम इन्द्र-पद त्रयः इन्द्राः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- १. इन्द्र तीन प्रकार के हैं-१. नामइन्द्रनामेन्द्रः, स्थापनेन्द्रः, द्रव्येन्द्रः । केवल नाम से इन्द्र, २. स्थापनाइन्द्रकिसी वस्तु में इन्द्र का आरोपण, ३. द्रव्यइन्द्र-भूत या भावी इन्द्र। त्रयः इन्द्राः प्रज्ञप्ता:, तद्यथा-ज्ञानेन्द्रः, २. इन्द्र तीन प्रकार के हैंदर्शनेन्द्रः, चरित्रेन्द्रः। १. ज्ञानइन्द्र २. दर्शनइन्द्र ३. चरित्रइन्द्र । त्रयः इन्द्रा: प्रज्ञप्ताः, तद्यथा देवेन्द्रः, ३. इन्द्र तीन प्रकार के हैंअसुरेन्द्रः, मनुष्येन्द्रः । १. देव इन्द्र २. असुरइन्द्र ३. मनुष्यइन्द्र । २. तओ इंदा पण्णत्ता, तं जहा णाणिदे, सणिदे, चरित्तिदे। ३. तओ इंदा पण्णत्ता, तं जहा देविदे, असुरिंदे, मणुस्सिदे। विकुव्वणा-पदं विकरण-पदम् विकरण-पद ४. तिविहा विकुव्वणा पण्णत्ता, तं त्रिविधं विकरणं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा- ४. विक्रिया तीन प्रकार की होती हैजहा—बाहिरए पोग्गलए बाह्यान् पुद्गलकान् पर्यादाय-एक १. बाह्य पुद्गलों को ग्रहण कर की जाने परियादित्ता—एगा विकुव्वणा, विकरणम्, बाह्यान् पुद्गलान् अपर्या वाली, बाहिरए पोग्गले अपरियादित्ता- दाय-एक विकरणम्, बाह्यान्। २. बाह्य पुद्गलों को ग्रहण किए बिना एगा विकुब्वणा, बाहिरए पोग्गले पुद्गलान् पर्यादायापि अपर्यादायापि- की जाने वाली, परियादित्तावि अपरियादित्तावि- एक विकरणम् । ३. बाह्य पुद्गलों के ग्रहण और अग्रहण एगा विकुव्वणा। दोनों के द्वारा की जाने वाली। ५. तिविहा विकुव्वणा पण्णत्ता, तं त्रिविधं विकरणं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-- ५. विक्रिया तीन प्रकार की होती है जहा—अब्भंतरए पोग्गले आभ्यन्तरिकान् पुद्गलान् पर्यादाय- १. आन्तरिक पुद्गलों को ग्रहण कर की परियादित्ता—एगा विकुम्वणा, एकं विकरणम्, आभ्यन्तरिकान् जाने वाली, अभंतरए पोग्गले अपरियादित्ता- पुद्गलान् अपर्यादाय—एकं विकरणम्, २. आन्तरिक पुद्गलों को ग्रहण किए एगा विकुव्वणा, अब्भंतरए पोग्गले आभ्यन्तरिकान् पुद्गलान् पर्यादायापि बिना की जाने वाली, परियादित्तावि अपरियादित्तावि. अपर्यादायापि_एक विकरणम । ३. आन्तरिक पुद्गलों के ग्रहण और एगा विकुव्वणा। अग्रहण दोनों के द्वारा की जाने वाली। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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