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ठाणं (स्थान)
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स्थान ३ : आमुख
इनमें 'जुगुप्सा का निवारण' यह नया हेतु है । लज्जा स्वयं की अनुभूति है । जुगुप्सा लोकानुभूति है । लोक नग्नता से घृणा करते थे। यह इससे ज्ञात है। भगवान् महावीर को नग्नता के कारण कई कठिनाइयां झेलनी पड़ी। आचारांगचूर्णिकार ने यह स्पष्ट किया है।
प्रस्तुत स्थान में कुछ प्राकृतिक विषयों का संकलन भी मिलता है, जो उस समय की धारणाओं का सूचक है, जैसेअल्पवृष्टि और महावृष्टि के तीन-तीन कारणों का निर्देश ।'
व्यवसाय के आलापक में लौकिक, वैदिक और सामयिक तीनों व्यवसाय निरूपित हैं। उसमें त्रिवर्ग [ अर्थ, धर्म और काम] और अर्धयोनि [साम, दंड और भेद ] जैसे विषय उल्लिखित हैं। वैदिक व्यवसाय के लिए ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद-ये तीन ही उल्लिखित हैं। अथर्ववेद इन तीनों से उद्धृत है। मूलतः वेद तीन ही हैं । इस प्रकार अनेक महत्त्वपूर्ण सूचनाएं प्रस्तुत स्थान में मिलती हैं। विषयों की विविधता के कारण इसे पढ़ने में रुचि और ज्ञान, दोनों परिपुष्ट होते हैं।
१. ३।३५६, ३६०
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२. ३।३६५-४००
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