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ठाणं (स्थान)
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स्थान २ : टि० १३१
सागरोपम। जिसको पल्य ( धान्य मापने की गोलाकार प्याली) की उपमा से उपमित किया जाता है उसे पल्योपम कहते हैं। जिसको सागर की उपमा से उपमित किया जाता है उसे सागरोपम कहते हैं ।
पल्योपम के तीन भेद हैं- उद्धारपत्योपम, अद्धापल्योपम और क्षेत्रपल्योपम। इनमें से प्रत्येक के बादर (संव्यवहार ) और सूक्ष्म- ये दो-दो भेद होते हैं ।
बादरउद्धारपत्योपम
कल्पना कीजिए एक पत्थ है। वह एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा और एक योजन गहरा है। इस योजन का परिमाण उत्सेध आंगुल से है । उस पल्य की परिधि तीन योजन से कुछ अधिक है। शिर मुंडन के बाद एक दिन से लेकर सात दिन तक के उगे हुए बालों के अग्रभाग से उस पल्य को पूर्ण भरा जाए । पल्य को बालों से इतना ठूस कर भरा जाए, जिसमें न अग्नि प्रवेश कर सके और न वायु उन बालों को उड़ा सके। अधिक निचित होने के कारण उसमें अग्नि और वायु प्रवेश नहीं पा सकती। प्रति समय एक-एक बालाग्र को निकालें । जितने समय में वह पल्य पूर्णतया खाली हो जाए, उस समय को बादर ( व्यावहारिक) उद्धारपल्योपम कहा जाता है । वे बालाग्र चर्म चक्षुओं के द्वारा ग्राह्य और प्ररूपणा करने में व्यवहारतः उपयोगी होते हैं इसलिए इसे व्यावहारिक भी कहा जाता है । व्यवहार के माध्यम से सूक्ष्म का निरूपण सरलता से हो जाता है।
सूक्ष्मउद्धारपत्योपम
बादरउद्धारपल्योपम में पल्य को वालों के अग्रभाग से भरा जाता है। यहां वैसे पल्य को बालों के असंख्य टुकड़े कर भरा जाए। प्रति समय एक-एक बालखण्ड को निकाला जाए। जितने समय में वह पल्य खाली हो उसको सूक्ष्म उद्धारपल्योपम कहा जाता है।
पल्य में बालाय संख्यात होते हैं। उनका उद्धार संख्येय काल में किया जा सकता है। इसलिए इसे उद्धारपत्योपम कहा जाता है।
बादरअद्धापल्योपम—
इसकी सम्पूर्ण प्रक्रिया बादरउद्धारपल्योपम के समान है । अन्तर केवल इतना ही है कि वहां प्रति समय एक-एक बाला को निकाला जाता है, यहां प्रति सौ वर्ष में एक-एक वालाग्र को निकाला जाता है। सुक्ष्मअद्धापल्योपम-
सूक्ष्म उद्धारपल्योपम की प्रक्रिया यहां होती है । अन्तर केवल इतना ही कि वहां प्रति समय एक-एक बालखंड को निकाला जाता है यहां प्रति सौ वर्ष में एक-एक बालखंड को निकाला जाता है ।
बादर क्षेत्रपल्योपम
बादरउद्धारपत्योपम में वर्णित पल्य के समान एक पल्य है। उसे शिर मुंडन के बाद एक दिन से लेकर सात दिन तक के उगे हुए बालागों के असंख्यातवें भाग से भरा जाए।
बाला का असंख्यातवां भाग पनक ( फफूंदी) जीव के शरीर से असंख्यात गुने स्थान का अवगाहन करता है । प्रति समय बाल-खण्डों से स्पृष्ट एक-एक आकाश प्रदेश का उद्धार किया जाए। जितने समय में पल्य के सारे स्पृष्ट-प्रदेशों का उद्धार होता है, उस समय को बादरक्षेत्रपल्योपम कहा जाता है। बालाग्र खण्ड संख्येय होते हैं इसलिए उनके उद्धार में संख्ये वर्ष ही लगते हैं । सूक्ष्मक्षेत्रपल्योपम
इसकी सम्पूर्ण प्रक्रिया बादरक्षेत्रपल्योपम के समान है । अन्तर केवल इतना ही कि वहां बालाग्र खण्ड से स्पष्ट आकाश के प्रदेशों का उद्धार किया जाता है, लेकिन यहां वालाग्र खण्ड से स्पृष्ट और अस्पृष्ट दोनों आकाश-प्रदेशों का उद्धार किया जाता है। इस प्रक्रिया में व्यावहारिक उद्धारपत्योपम काल से असंख्यगुण काल लगता है।
प्रश्न आता है - पाल्य को बालाग्र के खंडों से ठूंस कर भरा जाता है, फिर उसमें उनसे अस्पृष्ट आकाश-प्रदेश कैसे रह सकते हैं ?
उत्तर- आकाश-प्रदेश अति सूक्ष्म होते हैं इसलिए वे बाल-खंडों से भी अस्पृष्ट रह जाते हैं। स्थूल उदाहरण से इस
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