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ठाणं (स्थान)
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स्थान २ : टि० १२६-१२८
आराम-जहां विविध प्रकार के वृक्ष और लताएं होती हैं और जहां कदली आदि के प्रच्छन्नगृह निर्मित होते हैं और जहां
दम्पतियों की क्रीड़ा के लिए प्रच्छन्नगृह निर्मित होते हैं, उसे आराम कहा जाता है।' उद्यान-वह स्थान जहां लोग गोठ (Picnic) आदि के लिए जाते हों और जो ऊंचाई पर बना हुआ हो।' वन-जहां एक जाति के वृक्ष हों।' वनखण्ड-जहां अनेक जाति के वृक्ष हों।
वापी, पुष्करिणी, सर, सरपंक्ति, कूप, तालाब, द्रह और नदी–प्रस्तुत प्रकरण में जलाशयों के इतने शब्द व्यवहृत हुए हैं। वापी, पुष्करिणी-ये दोनों एक ही कोटि के जलाशय हैं, इनमें वापी चतुष्कोण और पुष्करिणी वृत्त होती है।
वृत्तिकार ने पुष्करिणी का एक अर्थ पुष्करवती–कमल-प्रधान जलाशय किया है।" सर-सहज बना हुआ। तडाग-जो ऊंचा और लम्बा खोदा हुआ हो।'
अभिधानचिन्तामणि में सर और तडाग दोनों को पर्यायवाची माना है। यहां एक ही प्रसंग में दोनों नाम आए हैं, इससे लगता है इनमें कोई सूक्ष्मभेद अवश्य है। 'सर' सहज बना हुआ होता है और तडाग-ऊंचा तथा लम्बा खोदा हुआ होता है। सरपंक्ति-सरों की श्रेणी। द्रह-नदियों का निम्नतर प्रदेश । वातस्कंध-घनवात, तनुवात आदि वातों के स्कंध । अवकाशान्तर---धनवात आदि वात स्कंधों के नीचे वाला आकाश । वलय-पृथ्वी के चारों ओर घनोदधि, घनवात, तनुवात आदि का वेष्टन । विग्रह-लोक नाडी के घुमाव। वेला–समुद्र के जल की वृद्धि। कूटागार-शिखरों पर रहे हुए देवायतन। विजय-महाविदेह के क्षेत्र, कच्छादि क्षेत्र, जो चक्रवर्ती के लिए विजेतव्य ।
इनमें जीव-अजीव दोनों व्याप्त हैं, इसलिए ये जीव-अजीव दोनों हैं ।
१२६-१२८ अतियानगृह, अवलिंब, सनिष्प्रवात (सू० ३६१) अतियानगृह
अतियान का अर्थ है नगर-प्रवेश । वृत्तिकारने ३।५०३ की वृत्ति में यही अर्थ किया है। नगर-प्रवेश करते समय
१. स्थानांगवृत्ति, पत्र ८३ :
आरामा-विविधवृक्षलतोपशोभिताः कदल्यादिप्रच्छन्नगृहेषु स्त्रीसहितानां पुंसां रमणस्थानभूता इति । २. स्थानांगवृत्ति, पत्र ८३ :
उद्यानानि पत्रपुष्पफलच्छायोपगादिवृक्षोपशोभितानि बहुजनस्य विविधवेषस्पोन्नतमानस्य भोजनार्थ यान-गमनं
येष्विति। ३. स्थानांगवृत्ति, पत्न८३ :
वनानोत्येकजातीयवृक्षाणि । ४. स्थानांगवृत्ति , पत्र ८३ :
बनखण्डा:-अनेकजातीयोत्तमवृक्षाः । ५. स्थानांगवत्ति, पत्र ८३ :
वापी चतुरस्रा पुष्करिणी वृत्ता पुष्करवती वेति ।
६. उपासकदशावृत्ति, हस्तलिखित, पन ८ :
सरः स्वभावनिष्पन्न । ७. उपासकदशावृत्ति, हस्तलिखित, पत्न ८ :
खननसंपन्नमुत्तान विस्तीर्णजलस्थानं । ८. (क) निशीथचूणि, भाग ३, पृष्ठ ३४६ :
सरपंती वा एगं महाप्रमाणं सर, ताणि चेव बहूणि
पंतीठियाणि पत्तेयबाहुजुत्ताणि सरपंती। ६. उपासकदशावृत्ति , हस्तलिखित, पत्र :
नद्यादीनां निम्नतरः प्रदेशः। १०. स्थानांगवृत्ति, पन १६२ :
अतियानं नगरप्रवेशः।
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