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ठाणं (स्थान)
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स्थान २: टि०१२५
मडंब-मडंब के तीन अर्थ किए गए हैं
१. जिसके एक योजन तक कोई दूसरा गांव न हो।' २. जिसके ढाई योजन तक कोई दूसरा गांव न हो।
३. जिसके चारों ओर आधे योजन तक गांव न हो। द्रोणमुख-१. जहां जल और स्थल दोनों निर्गम और प्रवेश के मार्ग हों।
उत्तराध्ययन के वृत्तिकार ने इसके लिए भृगुकच्छ और ताम्रलिप्ति का उदाहरण दिया है। २. समुद्र के किनारे बसा हुआ गांव, ऐसा गांव जिसमें जल और स्थल से पहुंचने के मार्ग हों।
३. ४०० गांवों की राजधानी।। पत्तन-(क)-जलपत्तन-जलमध्यवर्ती द्वीप ।
(ख)-स्थलपत्तन-निर्जलभूभाग में होने वाला। उत्तराध्ययन के वृत्तिकार ने जलपत्तन के प्रसंग में काननद्वीप और स्थलपत्तन के प्रसंग में मथुरा का उदाहरण
प्रस्तुत किया है। आकर-१. सोना, लोहे आदि की खान।'
२. खान का समीपवर्ती गांव, मजदूर-बस्ती।' आश्रम-१. तापसों का निवासस्थान।
२.तीर्थ-स्थान ।१ संवाह.-१. जहां चारों वर्गों के लोगों का अति मात्रा में निवासह २
२. पहाड़ पर बसा हुआ गांव, जहां किसान समभूमि से खेती करके धान्य को रक्षा के लिए ऊपर की भूमि में ले
जाते हैं।" सन्निवेश-१. याना से आए हुए मनुष्यों के रहने का स्थान ।
२. सार्थ और कटक का निवास स्थान ।" घोष-आभीर-बस्ती।१६
१. निशीथचूणि, भाग ३, पृष्ठ ३४६ :
जोयणभतरे जस्स गामादी णत्थि तं मडंबं । २. उत्तराध्ययनबृहद्वृत्ति, पत्र ६०५ । ३. स्थानांगवृत्ति, पत्र ८३ :
मडम्बानि सर्वतोऽद्धंयोजनात् परतोऽवस्थितग्रामाणि । ४. (क) निशीथचूणि, भाग ३, पृष्ठ ३४६ : ।
दोणि मुहा जस्स तं दोषणमुहं जलेण वि थलेण वि
भंडमागच्छति । (ख) स्थानांगवृत्ति, पत्र ८३ । ५. उत्तराध्ययनबृहद् वृत्ति, पत्र ६०५ । ६. कौटिलीय अर्थशास्त्र २२
चतुःशतग्राम्यो द्रोणमुखम्। ७. (क) निशीथचूणि, भाग ३, पृष्ठ ३४६ ।
(ख) उत्तराध्ययनबृहद्वृत्ति, पत्र ६०५ ।
(ग) स्थानांगवृत्ति, पत्र ८३ । ८. (क) निशीथचूणि, भाग ३, पृष्ठ ३४६ :
सुवण्णादि आगारो। (ख) स्थानांगवृत्ति, पत्र ८३ :
लोहाद्युत्पत्तिभूमयः ।
६. उत्तराध्ययनबृहद्वृत्ति, पत्र ६०५ । १०. (क) निशीथचूणि, भाग ३, पृष्ठ ३४६ ।
(ख) उत्तराध्ययनबृहद्वृत्ति, पत्र ६०५ । ११. स्थानांगवृत्ति, पत्र ८३ । । १२. उत्तराध्ययनंबृहवृत्ति, पत्र ६०५ । १३. (क) स्थानांगवृत्ति, पत्न ८३ :
समभूमौ कृषि कृत्वा येषु दुर्गभूमिभूतेषु धान्यानि कृषि
बलाः संवहन्ति रक्षार्थमिति । (ख) निशीथचूणि, भाग ३, पृष्ठ ३४६ :
अण्णत्थ किसि करेत्ता अन्नत्थ वोढुं वसंति तं संबाह
भण्णति । १४. (क) उत्तराध्ययनबृहद्वृत्ति, पत्र ६०५ ।
(ख) निशीथचूणि, भाग ३, पृ० ३४६-३४७ । १५. स्थानांगवृत्ति, पत्र ८३ :
सार्थकटकादेः । १६. (क) उत्तराध्ययनबृहद्वृत्ति, पन ६०५ । (ख) स्थानांगवृत्ति, पत्र ८३ :
घोषा-गोष्ठानि ।
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