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ठाणं (स्थान)
१०० सहस्रवर्ष - शत सहस्रवर्षं ।
८४ लाख वर्ष - पूर्वाङ्ग ।
८४ लाख पूर्वाङ्ग–पूर्व ।
८४ लाख पूर्व - त्रुटितांग |
८४ लाख त्रुटितांग - त्रुटित ।
८४ लाख वुटित - अटटांग |
८४ लाख अटटांग - अटट ।
८४ लाख अटट- अयवांग ।
८४ लाख अयवांग — अथव ।
८४ लाख अयव - हूहूकांग ।
८४ लाख हूहूकांग - हूहूक ।
८४ लाख हूहूक -- उत्पलांग |
८४ लाख उत्पलांग-उत्पल ।
८४ लाख उत्पल - पद्मांग ।
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८४ लाख पद्मांग - पद्म ।
८४ लाख पद्म नलिनांग ।
८४ लाख नलिनांग - नलिन ।
८४ लाख नलिन -अच्छनिकुरांग' ।
८४ लाख अच्छनि कुरांग — अच्छनिकुर ।
८४ लाख अच्छनिकुर - अयुतांग |
८४ लाख अयुतांग - अयुत ।
८४ लाख अयुत - नयुतांग |
८४ लाल नयुतांग - नयुत ।
८४ लाख नयुत -- प्रयुतांग ।
८४ लाख प्रयुतांग - प्रयुत ।
८४ लाख प्रयुत - चूलिकांग ।
१४१
८४ लाख चूलिकांग - चूलिका ।
८४ लाख चूलिका - शीर्ष प्रहेलिकांग |
८४ लाख शीर्षप्रहेलिकांग - शीर्षपहेलिका ।
जैनों में लिखी जाने वाली सबसे बड़ी संख्या शीर्षप्रहेलिका है, जिससे ५४ अंक और १४० शून्य होते हैं । १९४ कात्मक संख्या सबसे बड़ी संख्या है।
शीर्षप्रहेलिका अंकों में इस प्रकार है---
७५८२६३२५३०७३०१०२४११५७६७३५६९६७५६९६४०६२१८६६६८४८०८०१८३२९६ इसके आगे १४०
शून्य होते हैं ।
वीरनिर्वाण के ८२७- ८४० वर्ष बाद मथुरा और वल्लभी में एक साथ दो संगीतियां हुई थीं । माथुरी वाचना के
१. अनुयोगद्वारसूत्र की टीका तथा लोकप्रकाश (सर्ग २९, श्लोक २९) में अर्थनिपुरांग और अर्थनिपुर संख्या स्वीकार की है।
स्थान २ : टि० १२४
२. काललोकप्रकाश, २८।१२ :
शीर्ष प्रहेलिकाङ्का: स्युश्चतुर्णवतियुक्शतं । अङ्कस्थानाभिद्याश्चेमाः श्रित्वा माथुरवाचनाम् ।।
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