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ठाणं (स्थान)
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१२२-१२४ (सू० ३८७-३८६)
का वास्तविक द्रव्य नहीं है । वह औपचारिक द्रव्य है । वस्तुतः वह जीव और अजीव दोनों का पर्याय है। इसीलिए उसे जीव और अजीव दोनों कहा गया है।
ऋग्देव १।१५५।६ में काल के ६४ अंश बतलाए गए हैं-संवत्सर, दो अयन, पांच ऋतु (हेमंत और शिशिर को एक मानकर ), १२ मास, २४ पक्ष, ३० अहोरात, आठ प्रहर और १२ राशियां ।
• जैन आगमों के अनुसार काल का सूक्ष्मतम भाग समय है। समय से लेकर शीर्ष प्रहेलिका तक का काल गण्यमान है, उसकी राशि अंकों में निश्चित है।
समय --- काल का सर्वसूक्ष्म भाग, जो विभक्त न हो सके, को समय कहा जाता है। इसे कमल - पत्र भेद के उदाहरण द्वारा समझाया गया है ।
एक-दूसरे से सटे हुए कमल के सौ पत्तों को कोई बलवान व्यक्ति सुई से छेदता है, तब ऐसा ही लगता है कि सब पत्ते साथ ही छिद गए, किन्तु ऐसा होता नहीं है। जिस समय पहला पत्ता छिदा उस समय दूसरा नहीं। इस प्रकार सबका छेदन क्रमशः होता है ।
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दूसरा उदाहरण जीर्ण वस्त्र के फाड़ने का है -
एक कला कुशल युवा और बलिष्ठ जुलाहा जीर्ण-शीर्ण वस्त्र या साड़ी को इतनी शीघ्रता से फाड़ डालता है कि दर्शक को ऐसा लगता है मानो सारा वस्त्र एक साथ फाड़ डाला। किन्तु ऐसा होता नहीं। वस्त्र अनेक तंतुओं से बनता है। जब तक ऊपर के तंतु नहीं फटते तब तक नीचे के तंतु नहीं फट सकते । अतः यह निश्चित है कि वस्त्र के फटने में काल-भेद होता है। वस्त्र अनेक तंतुओं से बनता है। प्रत्येक तंतु में अनेक रोएं होते हैं। उनमें भी ऊपर का रोआं पहले छिंदता है । तब कहीं उसके नीचे का रोआं छिंदता है । अनन्त परमाणुओं के मिलन का नाम संघात है। अनन्त संघातों का एक समुदाय और अनन्त समुदायों की एक समिति होती है। ऐसी अनन्त समितियों के संगठन से तंतु के ऊपर का एक रोआं बनता है । इन सबका छेदन क्रमशः होता है। तंतु के पहले रोएं के छेदन में जितना समय लगता है, उसका अत्यन्त सूक्ष्म अंश यानी असंख्यातवां भाग 'समय' कहलाता है। वर्तमान विज्ञान के जगत् में काल की सूक्ष्म-मर्यादा के अनेक उदाहरण मिलते हैं। उनमें से एक उदाहरण यहां प्रस्तुत है । वर्कशायर ( इंग्लैंड) के ऐल्डरमेस्टन अस्त्र - अनुसंधान केन्द्र में एक ऐसा कैमरा बनाया गया है, जो एक सेकंड में ५ करोड़ चित्र खींच लेता है ।
असंख्येय समय -- आवलिका ।
स्थान २ : टि० १२२-१२४
संख्यात आवलिका ( एक उच्छ्वास- निःश्वास )
आन प्राण ।
रोग -रहित स्वस्थ व्यक्ति को एक उच्छ्वास और एक निःश्वास में जो समय लगता है उसको 'आन प्राण' कहते हैं । सात प्राण (सात उच्छ्वास - निःश्वास ) -- स्तोक ।
सात स्तोक लव |
सतहत्तर लव (३७७३ उच्छ्वास - निःश्वास ) - मुहूर्त |
३० मुहूर्त - अहोरात्र |
१५ अहोरात्र - पक्ष ।
२ पक्ष मास ।
२ मास ऋतु ।
३ ऋतु-अयन ।
२ अयन - संवत्सर ।
५ संवत्सर - युग ।
२० युग - शतवर्ष ।
१० शतवर्ष -- सहस्रवर्ष ।
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