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________________ ठाणं (स्थान) १३७ स्थान २ : टि० १०६-११२ ( ११ दिन के उपवास ) होता है। इस प्रतिमा में ३६२ दिन का तप होता है और ४६ दिन पारणा के लगते हैं। कुल मिलाकर ४४१ दिन लगते हैं। इसकी स्थापना विधि इस प्रकार है प्रथम पंक्ति के आदि में ५ का अंक स्थापित कीजिए और अन्त में ११ का अंक स्थापित कीजिए। बीच की संख्या क्रमशः भर दीजिए। अगली पंक्ति के आदि में पूर्व पंक्ति का मध्य अंक स्थापित कर उसे क्रमशः भर दीजिए। इसी क्रम से सातों पंक्तियां भर दीजिए । ' इसका यन्त्र इस प्रकार है ५ ८ ११ Jain Education International ७ १० ६ w ६ ε ५ ८ ११ ७ १० ७ १० ६ က ५ ८ ११ ८ १. स्थानांगवृत्ति, पत्र २७६ : महती तु द्वादशादिना चतुर्विंशतितमान्तेन द्विनवत्यधिक दिनशतत्त्रयमानेन तपसा भवति । पारणक दिनान्ये कोनपञ्चाशदिति । ११ ७ १० ६ w ५ אל w ५ ५ ११ ७ १० ६ १० ہوں & ५ For Private & Personal Use Only ८ ११ ७ ११ ७ १० २. स्थानांगवृत्ति, पत्र २७६ : ६ w कोष्ठक में जो अंक हैं उनका अर्थ है-उतने दिन का उपवास । १०६-११२ उपपात, उद्वर्तन, च्यवन, गर्भ अवक्रान्ति ( सू० २५० - २५३ ) प्रस्तुत चार सूत्रों में जन्म और मृत्यु के लिए परिस्थिति के अनुसार भिन्न-भिन्न शब्दों का प्रयोग किया गया है। जैसे - देव और नारक जीवों का जन्म गर्भ से नहीं होता । वे अन्तर्मुहूर्त्त में ही अपने पूर्ण शरीर का निर्माण कर लेते हैं । इसलिए उनके जन्म को उपपात कहा जाता है। नैरयिक और भवनवासी देव अधोलोक में रहते हैं। वे मरकर ऊपर आते हैं, इसलिए उनके मरण को उद्वर्तन कहा जाता है । ५ ज्योतिष्क और वैमानिक देव ऊर्ध्वंस्थान में रहते हैं । वे आयुष्य पूर्ण कर नीचे आते हैं, इसलिए उनके मरण को च्यवन कहा जाता है। IS 5 पंचादिगारसंते, ठविडं मज्झं तु आइमणुपति । उचियकमेण य, सेसे महई भद्रोत्तरं जाण ॥ www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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