________________
ठाणं (स्थान)
१३६
स्थान २ : टि० १०८
इस प्रतिमा में स्थित मुनि शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को एक कवल आहार लेता है और क्रमशः एक-एक कवल बढ़ाता हुआ शुक्ल पक्ष की पूर्णिका को १५ कवल आहार लेता है। इसी प्रकार कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को १४ कवल आहार लेकर क्रमशः एक-एक कवल घटाता हुआ अमावस्या को उपवास करता है।
वज्रमध्यचन्द्रप्रतिमा
इस चन्द्रप्रतिमा में मध्यभाग वज्र की तरह कृश होता है इसलिए इसको वज्रमध्यचन्द्रप्रतिमा कहते हैं । इसका भावार्थ है - जिसका आदि-अन्त स्थूल और मध्य कृश हो वह प्रतिमा ।
इस प्रतिमा में स्थित मुनि कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को १४ कवल आहार लेकर क्रमशः एक-एक कवल घटाता हुआ अमावस्या को उपवास करता है। इसी प्रकार शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को एक कवल आहार लेकर क्रमशः एक-एक कवल बढ़ाता हुआ पूर्णिमा को १५ कवल आहार लेता है ।'
इन प्रतिमाओं को स्वीकार करने वाला मुनि व्युत्सृष्टकाय और व्यक्तदेह होता है । व्युत्सृष्टकाय का अर्थ है-वह रोगातंक उत्पन्न होने पर शरीर का प्रतिकर्म नहीं करता ।
त्यक्तदेह का अर्थ है - वह बन्धन, रोधन, हनन और मारण का निवारण नहीं करता ।
इस प्रकार उक्त प्रतिमाओं को स्वीवार करने वाला मुनि जो भी परिषह और उपसर्ग उत्पन्न होते हैं उन्हें समभाव से सहन करता है ।
भद्रोत्तर प्रतिमा - यह प्रतिमा दो प्रकार की है— क्षुद्रिका भद्रोत्तरप्रतिमा और महतीभद्रोत्तरप्रतिमा ।
क्षुद्रिका भद्रोत्तरप्रतिमा - यह द्वादशभक्त (पांच दिन के उपवास) से प्रारम्भ होती है और इसमें अधिकतम तप विशतिभक्त (नो दिन के उपवास) का होता है। इसमें तप के कुल १७५ दिन होते हैं और २५ दिन पारणा के लगते हैं। कुल मिलाकर २०० दिन लगते हैं । इसकी स्थापना विधि इस प्रकार है- प्रथम पंक्ति के आदि में ५ का अंक स्थापित कीजिए और अन्त में का अंक स्थापित कीजिए । बीच की संख्या क्रमशः भर दीजिए। पूर्व की पंक्ति के मध्य अंक को अगली पंक्ति
के आदि में स्थापित कीजिए, फिर क्रमशः भर दीजिए। इस क्रम से पांचों पंक्तियां भर दीजिए।' इसका यन्त्र इस प्रकार है
६
५
७
Jain Education International
६
5
८
५
७
७
१. व्यवहार सूत्र, उद्देशक १०, भाष्यगाथा ३, वृत्ति पत्र २ । २. व्यवहारसूत्र, उद्देशक १०, भाष्य गाथा ६ :
बातिय पतिय सिभियरोगायके हि तत्थ पुट्ठोवि । न कुणइ परिकम्मंसो, किंचिवि वोस देहो उ ॥ ३. व्यवहार सूत्र, उद्देशक १०, भाष्य गाथा ६ :
बंधेज्ज व संभेज्जव, कोई व हणेज्ज अहव मारेज्ज । वारेइ न सो भयवं, चियत्तदेहो अपडिबुद्धो ॥
ह
६
८
८
५
७
ε
५.
कोष्ठक में जो अंक संख्या है उसका अर्थ है उतने दिन का उपवास ।
&
६
६
६
For Private & Personal Use Only
८
महतीभद्रोत्तरप्रतिमा
यह प्रतिमा द्वादशभक्त (५ दिन के उपवास) से प्रारम्भ होती है और इस में अधिकतम तप चतुर्विंशतिभक्त
५
७
४. स्थानांगवृत्ति, पत्र २७६ :
भद्रोत्तर प्रतिमा द्विधा - क्षुल्लिका महती च तव आद्या द्वादशादिना विशान्तेन पञ्चसप्तत्यधिकदिनशतप्रमाणेन तपसा भवति पारणक दिनानि पञ्चविंशतिरिति । ५. स्थानांगवृत्ति, पत्र २७६ :
पंचाईय नवते, ठबिउं मज्झं तु आदिमणपति । उचियकमेण य, सेसे जाणह भद्दोत्तरं खुडुं ॥
www.jainelibrary.org