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________________ ठाणं (स्थान) १३३ स्थान २ : टि० १०८ विवेकप्रतिमा की तुलना योगसूत्र की विवेकख्याति से होती है। महर्षि पतञ्जलि ने इसे हानोपाय बतलाया है।' व्युत्सर्गप्रतिमा-यह प्रतिमा विसर्जन की प्रक्रिया है। विवेकप्रतिमा के द्वारा हेय वस्तुओं का भेदज्ञान पुष्ट होने पर उनका विसर्जन करना ही व्युत्सर्गप्रतिमा है। औपपातिक सूत्र में व्युत्सर्ग के सात प्रकार बतलाए गए हैं१. शरीरव्युत्सर्ग--कायोत्सर्ग, शिथिलीकरण। २. गणव्युत्सर्ग-विशिष्ट साधना के लिए एकल विहार का स्वीकार। ३. उपाधिव्युत्सर्ग-वस्त्र आदि उपकरणों का विसर्जन । ४. भक्तपानव्युत्सर्ग--भक्तपान का विसर्जन। ५. कषायव्युत्सर्ग-क्रोध, मान, माया और लोभ का विसर्जन । ६. संसारव्युत्सर्ग-संसार-भ्रमण के हेतुओं का विसर्जन । ७. कर्मव्युत्सर्ग-कर्म-बन्ध के हेतुओं का विसर्जन। भद्राप्रतिमा-पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर-इन चारों दिशाओं में चार-चार प्रहर तक कायोत्सर्ग करना। भगवान महावीर ने सानुलष्ठि ग्राम के बाहर जाकर भद्राप्रतिमा स्वीकार की। उसकी विधि के अनुसार भगवान ने प्रथम दिन पूर्व दिशा की ओर अभिमुख होकर कायोत्सर्ग किया। रात भर दक्षिण दिशा की ओर अभिमुख होकर कायोत्सर्ग किया। दूसरे दिन पश्चिम दिशा की ओर अभिमुख होकर कायोत्सर्ग किया। दूसरी रात्रि को उत्तर दिशा की ओर अभिमुख होकर कायोत्सर्ग किया। इस प्रकार षष्ठ भक्त (दो उपवास) के तप तथा दो दिन-रात के निरन्तर कायोत्सर्ग द्वारा भगवान् ने भद्राप्रतिमा सम्पन्न की। सुभद्राप्रतिमा-इस प्रतिमा की साधना-पद्धति वृत्तिकार के समय से पहले ही विच्छिन्न हो गई थी। महाभद्रप्रतिमा-पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर में एक-एक अहोरात्र तक कायोत्सर्ग करना। इसका कालमान चार दिन-रात का होता है। दशमभक्त (चार दिन के उपवास) से यह प्रतिमा पूर्ण होती है। भद्राप्रतिमा के अनन्तर ही भगवान् ने महाभद्रा प्रतिमा की आराधना की थी। सर्वतोभद्राप्रतिमा-पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर-इन चारों दिशाओं, चारों विदिशाओं तथा ऊर्ध्व और अध:-- इन दशों दिशाओं में एक-एक अहोरात्र तक कायोत्सर्ग करना । ऊर्ध्व दिशा के कायोत्सर्ग काल में ऊर्ध्वलोक में अवस्थित द्रव्यों का ध्यान किया जाता है। इसी प्रकार अधो दिशा के कायोत्सर्ग काल में अधोलोक में अवस्थित द्रव्य ध्यान के विषय बनते हैं। इस प्रतिमा का कालमान १० दिन-रात का है। यह २२ भक्त (दस दिन का उपवास) से पूर्ण होती है। भगवान महावीर ने इस प्रतिमा की भी आराधना की थी। यह प्रतिमा दूसरी पद्धति से भी की जाती है। इसके दो भेद हैं-क्षुद्रिकासर्वतोभद्रा और महतीसर्वतोभद्रा । इसमें एक उपवास से लेकर पांच उपवास किए जाते हैं। इसकी पूर्ण प्रक्रिया ७५ दिवसीय तपस्या से पूर्ण होती है। और पारणा के दिन २५ होते हैं । कुल मिलाकर १०० दिन लगते हैं। इसकी स्थापना-विधि इस प्रकार है-- १. योगदर्शन २०२६ विवेकख्यातिरविप्लवा हानोपायः । २. आवश्यकनियुक्ति, ४६५, ४६६ : सावत्थी वासं चित्ततवो साणुलट्ठि बहिं । पडिमाभद्द महाभद्द सव्वओभद्द पढमिआ चउरो। ३. स्थानांगवृत्ति, पत्र ६१ : सुभद्राप्येवं प्रकारैव संभाव्यते अदृष्टत्त्वेन तु नोक्ता। ४. आवश्यकनियुक्तिअवचूणि, पृ० २८६ : महाभद्रायां पूर्वदिश्येकमहोरात्रं, एवं शेषदिश्वपि, एषा दशमेन पूर्यते। ५. आवश्यकनियुक्ति, ४६६ । ६. आवश्यकनियुक्तिअवणि, पु० २८६ : सर्वतोभद्रायां दशस्वपि दिवेकैकमहोरात्रं, तवोर्वदिशमधिकृत्य यदा कायोत्सर्ग कुरुते तदोवलोकव्यस्थितान्येव कानिचिछव्याणि ध्यायति, अधोदिशि त्वधोव्यवस्थितानि, एवमेषा द्वाविंशतिभक्तेन समाप्यते। ७. आवश्यकनियुक्ति, ४६६ । ८. स्थानांगवृत्ति, पत्र २७८ : ___सर्वतोभद्रा तु प्रकारान्तरेणाप्युच्यते, द्विधेयं-शुद्रिका महती च, तत्राद्या चतुर्थादिना द्वादशावसानेन पञ्चसप्ततिदिनप्रमाणेन तपसा भवति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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