________________
ठाणं (स्थान)
१३१
स्थान २ : टि०८६-६०
के लिए नहीं, किन्तु समानजातीय भेदों के उपलक्षण हैं । इसीलिए अनन्तर सूत्र में सामान्यतः देवों के दो प्रकार बतलाए हैं।
८६ (सू० २१२-२१६)
शब्द
भाषा शब्द
नो भाषा शब्द
अक्षर संबद्ध
नो अक्षर संबद्ध
आतोद्य
नो आतोद्य
तत
भूषण
नो भूषण
घन
शुषिर
घन
शुषिर
ताल
लतिका
भाषा शब्द-जीव के वाक्-प्रयत्न से होने वाला शब्द । नो भाषा शब्द-वाक्-प्रयत्न से भिन्न शब्द । अक्षर संबद्ध शब्द-वों के द्वारा व्यक्त होने वाला शब्द। नो अक्षर संबद्ध शब्द-अवर्णों के द्वारा होने वाला शब्द । अतोद्य शब्द-बाजे आदि का शब्द। नो आतोद्य शब्द-बांस आदि के फटने से होने वाला शब्द । तत शब्द-तार वाले बाजे-वीणा, सारंगी आदि से होने वाला शब्द । वितत शब्द-तार-रहित बाजे से होने वाला शब्द । तत घन शब्द-झांझ जैसे बाजे से होने वाला शब्द । तत शुषिर शब्द-वीणा से होने वाला शब्द । वितत घन शब्द-भाणक का शब्द। वितत शुषिर शब्द-नगाड़े, ढोल आदि का शब्द । भूषण शब्द-नूपुर आदि से होने वाला शब्द । नो भूषण शब्द-भूषण से भिन्न शब्द ताल शब्द-ताली बजाने से होने वाला शब्द । लतिका शब्द-(१) कांसी का शब्द ।
(२) लात मारने से होने वाला शब्द ।'
६० (सू० २३०)
बद्धपार्श्वस्पृष्ट-जो पुद्गल शरीर के साथ गाढ सम्बन्ध किए हुए हों, वे बद्ध कहलाते हैं और जो शरीर से चिपके रहते हैं, वे पुद्गल पार्श्वस्पृष्ट कहलाते हैं।
घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय--इन तीनों इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य पुद्गल 'बद्धपार्श्वस्पृष्ट' होते हैं।
१. स्थानांगवृत्ति, पत्र ५८, ५६ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org