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ठाणं (स्थान)
१२३
स्थान २: टि०५२
परोक्ष
आभिनिबोधिक
श्रुतज्ञान
श्रुतनिश्रित
अश्रुतनिश्रित
औत्पत्तिको वैनायकी कार्मिको
औत्पत्तिकी
वैनयिकी
कार्मिकी
परिणामिकी
पारिणामिकी
अवग्रह
ईहा
अवाय धारणा
अर्थावग्रह
व्यञ्जनावग्रह
श्रोनेन्द्रियव्यञ्जन० चक्षु०
घ्राणे
रसने
स्पर्शने.
श्रोत्रे ईहा
चक्षु० ईहा
घ्राणे० ईहा
जिह्व० ईहा
स्पर्श० ईहा
नोइंदिय ईहा
इसी प्रकार अवाय और धारणा के प्रकार हैं।
५२ (सू० १०१)
श्रुत-निश्रित-जो विषय पहले श्रुत शास्त्र के द्वारा ज्ञात हो, किन्तु वर्तमान में श्रुत का आलम्बन लिये बिना ही उसे जानना श्रुत-निथित अभिनिबोधिकज्ञान है, जैसे-किसी व्यक्ति ने आयुर्वेदशास्त्र का अध्ययन कर यह जाना कि निफला से कोष्ठ बद्धता दूर होती है। जब कभी वह कोष्ठ बद्धता से ग्रस्त होता है तब उसे त्रिफला-सेवन की बात सूझ जाती है। उसका यह ज्ञान श्रुत-निश्रित आभिनिबोधिकज्ञान है।
अश्रुत-निश्रित--जो विषय श्रुत के द्वारा नहीं किन्तु अपनी सहज विलक्षण-बुद्धि के द्वारा जाना जाए वह अश्रुतनिश्रित आभिमनिबोधिकज्ञान है।
नंदी में जो ज्ञान का वर्गीकरण है, उसके अनुसार श्रुत-निश्रित आभिनिबोधिकज्ञान के २८ प्रकार हैं।' तथा अश्रुतनिश्रित आभिनिबोधिकज्ञान के ४ प्रकार हैं
औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कामिकी और पारिणामिकी।
१. नंदीसूत्र, ४०-४६ । २. नंदीसूत्र, ३६।
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