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ठा. (स्थान)
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अनुसार इसका अर्थ है— शठता और आलस्य के कारण शास्त्रोपदिष्ट विधि-विधानों का अनादर करना' ।
क्रियाओं के तुलनात्मक अध्ययन से दो निष्कर्ष हमारे सामने प्रस्तुत होते हैं
१. क्रियाओं के व्याख्यान की दो परम्परा रही हैं । एक परम्परा आगमिक व्याख्या के परिपार्श्व की है, जिसका अनुसरण स्थानांग के वृत्तिकार अभयदेव सूरि ने किया है और दूसरी परम्परा तत्त्वार्थभाष्य के आधार पर विकसित हुई है। इस परम्परा में दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं के आचार्य लगभग एक रेखा पर चले हैं। सर्वार्थसिद्धि के कर्ता पूज्यपाद देवनन्दी, तत्त्वार्यवार्तिक के कर्ता आचार्य अकलङ्क श्लोकवार्तिक के कर्ता आचार्य विद्यानंद – ये तीनों दिगम्बर आचार्य हैं। इनका एक रेखा पर चलना आश्चर्य की बात नहीं, किन्तु तत्त्वार्थटीका के कर्ता हरिभद्र सूरि और भाष्यानुसारिणीटीका के कर्ता सिद्धसेन गणी – ये दोनों श्वेताम्बर आचार्य हैं, फिर भी इन्होंने व्याख्या की एकरूपता का निर्वाह किया है । सिद्धसेन गणी ने तत्त्वार्थ की व्याख्याओं का अनुसरण करते हुए भी स्थानांगंवृत्तिगत व्याख्या के प्रति जागरूक रहे हैं।
२. तत्त्वार्थवार्तिक में पचीस क्रियाओं के नाम निर्देश हैं, वे स्थानांग निर्दिष्ट नामों से कहीं-कहीं भिन्न भी हैं, जैसे— स्थानांग
तत्त्वार्थ सूत्र
जीवक्रिया
सम्यक्त्व, मिथ्यात्व
ईर्याथ
कायिकीक्रिया
आधिकरिणिकीक्रिया
प्रादोषिकीक्रिया
पारितापिकीक्रिया
प्राणातिपातिकीक्रिया
अप्रत्याख्यानक्रिया
अजीव क्रिया
कायिकी क्रिया
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अधिकरणिकी क्रिया
प्रादोषिकीक्रिया
पारितापनिकी क्रिया
प्राणातिपातक्रिया
अप्रत्याख्यानक्रिया
आरम्भिकीक्रिया
पारिग्रहिकी क्रिया
मायाप्रत्ययाक्रिया
मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया
दृष्टिजाकिया
स्पृष्टिजाक्रिया
प्रातीत्यिकी क्रिया
सामन्तोपनिपातिकी क्रिया
स्वास्तिकी क्रिया
नैसृष्टिकी क्रिया
आज्ञापनिका क्रिया
वैदारिणी क्रिया
अनवकांक्षाप्रत्ययाक्रिया
अनाभोगप्रत्ययाक्रिया
प्रेयस् प्रत्ययाक्रिया दोषप्रत्ययाक्रिया
X
X
१. ( क ) तत्त्वार्थवार्तिक, ६ ५:
शाठ्यालस्याभ्यां प्रवचनोपदिष्टविधिकर्तव्यतानादर :
आरम्भक्रिया
पारिग्रहिकी क्रिया
मायाक्रिया
मिथ्यादर्शन क्रिया
दर्शनक्रिया
स्पर्शनक्रिया
प्रात्यायिकीक्रिया
सामन्तानुपात क्रिया
स्वाहस्तक्रिया
निसर्गक्रिया
स्थान २ : टि० ४१
आज्ञाव्यापादिकाक्रिया
विदारणक्रिया
अनाकांक्षाक्रिया
अनाभोगक्रिया
X X समादान
प्रयोग
taraiक्षत्रिया |
(ख) तत्त्वार्थ सूत्र, ६६, भाष्यानुसारिणी टीका ।
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