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टिप्पणियाँ स्थान-२
१-वेद सहित (सू० १)
वेद का शाब्दिक अर्थ है अनुभूति । प्रस्तुत प्रकरण में वेद का अर्थ है-काम-वासना की अनुभूति । वेद के तीन प्रकार हैं-पुरुषवेद, स्त्रीवेद और नपुंसकवेद।
पुरुषवेद-स्त्री के प्रति होने वाली भोगानुभूति । स्त्रीवेद-पुरुष के प्रति होने वाली भोगानुभूति । नपुंसकवेद-स्त्री और पुरुष दोनों के प्रति होने वाली भोगानुभूति ।
पुरुष में पुरुष के प्रति, स्त्री के प्रति और नपुंसक के प्रति विकार भावना हो सकती है, इसलिए पुरुष में तीनों ही वेद होते हैं । स्त्री और नपुंसक के लिए भी यही बात है।
२-रूप सहित (सू०१)
हजारों-हजारों वर्ष पहले [सुदूर अतीत में ] यह प्रश्न चर्चा का विषय रहा है कि जगत् जो दृश्यमान है, वही है या उसके अतिरिक्त भी है। जैन, बौद्ध, वैदिक आदि सभी दर्शनों में इस प्रश्न पर चिन्तन हुआ है। प्रस्तुत सूत्र में जनदर्शन का चिन्तन है कि दृश्यमान जगत् रूपी और अरूपी दोनों हैं। संस्थान, वर्ण, गंध, रस और स्पर्श सहित वस्तु को रूपी कहा जाता है। जिसमें संस्थान आदि न हो वह अरूपी होता है । वैदिक दर्शन ने भी जगत् को मूर्त और अमूर्त माना है।'
३–नो आकाश (सू० १)
'नो' शब्द के दो अर्थ होते हैं१. निषेध। २. भिन्नार्थ।
निषेधार्थक 'नो' शब्द के द्वारा वस्तु का सर्वथा निषेध द्योतित होता है । भिन्नार्थक 'नो' शब्द के द्वारा उस वस्तु से भिन्न वस्तुओं का अस्तित्व द्योतित होता है।
प्रस्तुत प्रकरण में 'नो' शब्द का दूसरा अर्थ इष्ट है । अतः 'नो आकाश' के द्वारा आकाश के अतिरिक्त पांच द्रव्यों-- धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, काल, पुद्गलास्तिकाय और जीवास्तिकाय का प्रतिपादन किया गया है।
१. (क) शतपथब्राह्मण, १४१५।३।१:
द्वे एव ब्रह्मणो रूपे मूर्तञ्चवाऽमूर्तञ्च । (ख) बृहदारण्यक, २।३।१:
द्वे वा व ब्रह्मणो रूपे मूर्तञ्चवाऽमूर्तञ्च । (ग) विष्णुपुराण, १।२२।५३:
द्वे रूपे ब्रह्मणो रूपे, मूर्तञ्चामूर्तमेव च ।
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