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ठाणं (स्थान)
सो कालो बोद्धवो,
उवमा एगस्स पल्लस्स ॥ ३. एएस पल्लाणं,
atrast हवेज्ज दस गुणिता ।
तं सागरोवमस्स उ,
एगस्स भवे परीमाणं ॥
पाव-पदं
४०६. दुविहेको पण्णत्ते, तं जहा
परपइट्टिए चेव ।
४०७ 'दुविहे माणे, दुविहा माया, दुविहे लोभ, दुविहे पेज्जे,
दोसे, दुविकल, अभवखाणे, दुवि सुण्णे,
दु विहे परपरिवार, दुविहा अरतिरती, मियामोसे,
दुमिच्छादंसणसल्ले पण्णत्ते, तं जहा - आयपइट्ठिए चेव, परपइट्ठिए चेव ।
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सः कालः बोद्धव्यः,
उपमा एकस्य पल्यस्य ॥ ३. एतेषां पल्यानां कोटाकोटी भवेत् दश गुणिता । तत् सागरोपमस्य तु,
एकस्य भवेत् परिमाणम् ।।
तसा चेव, थावरा चेव ।
४०६. दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा- सिद्धा चेव, असिद्धा चेव ।
पाप-पदम्
द्विविधः क्रोधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा— आत्मप्रतिष्ठितश्चैव, परप्रतिष्ठितश्चैव ।
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द्विविधः मानः, द्विविधा माया, द्विविधः लोभः, द्विविधः प्रेयान्, द्विविधः दोषः, द्विविधः कलहः, द्विविधं अभ्याख्यानम्, द्विविधं पैशुन्यम्, द्विविधः परपरिवादः,
द्विविधा अरतिरतिः,
द्विविधा मायामृषा,
एवं रइयाणं जाव वैमाणि- एवं नैरयिकाणां यावत् वैमानिकानाम् ।
या ।
द्विविधं मिथ्यादर्शनशल्यं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा— आत्मप्रतिष्ठतं चैव, परप्रतिष्ठतं चैव ।
जीवा:
स्थान २ : सूत्र ४०६-४०६
गड्ढे को खाली होने में जितना समय लगे उसे पल्योपमकाल कहा जाता है। दस कोटी-कोटी पत्योपम जितने काल को सागरोपमकाल कहा जाता है।
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पाप-पद
४०६. क्रोध दो प्रकार का होता हैआत्मप्रतिष्ठित, परप्रतिष्ठित । १३२
जीव-पदं
जीव-पदम्
४०८. दुविहा संसारसमावण्णगा जीवा द्विविधाः संसारसमापन्नका
पण्णत्ता, तं जहा
प्रज्ञप्ताः, तद्यथात्रसाश्चैव, स्थावराश्चैव ।
द्विविधाः सर्वजीवाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ४०९. सब जीव दो प्रकार के होते हैंसिद्वाश्चैव, असिद्धाश्चैव । सिद्ध, असिद्ध |
४०७. मान दो प्रकार का, माया दो प्रकार की,
लोभ दो प्रकार का, प्रेम दो प्रकार का, द्वेष दो प्रकार का, कलह दो प्रकार का, अभ्याख्यान दो प्रकार का, पैशुन्य दो प्रकार का,
परपरिवाद दो प्रकार का, अरति रति दो प्रकार की, मायामृषा दो प्रकार की । मिथ्यादर्शनशल्य दो प्रकार का होता हैआत्मप्रतिष्ठित, परप्रतिष्ठित ।
इसी प्रकार नैरयिकों तथा वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डकों के जीवों के क्रोध आदि दो-दो प्रकार के होते हैं।
जीव-पद
४०८. संसारी जीव दो प्रकार के होते हैं
बस, थावर ।
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