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ठाणं (स्थान)
खय उवसम-पदं
४०३. दोहि ठाणेहिं आता केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए, तं जहा -
खरण चेव, उवसमेण चेव । ४०४. दोहि ठाणेहिं श्राता
केवलं बोधि बुज्ज्जा, केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वज्जा, केवलं बंभचेरवास मावसेज्जा, केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा, केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेज्जा, केवलं सुयणाणं उप्पाडेज्जा, केवलं ओहिणाणं उप्पाडेज्जा, केवलं मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहाखरण चेव, उवसमेण चेव ।
संग्रहणी-गाहा—
१. जं जोयण विच्छिष्णं, पल्लं एगाहियप्परूदाणं । होज्ज निरंतर णिचितं, भरितं वालग्गकोडीणं ॥ २. वाससए वाससए,
mahan अवहडंमि जो कालो ।
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क्षयोपशम-पदम्
क्षयोपशम-पद
द्वाभ्यां स्थानाभ्यां आत्मा केवलिप्रज्ञप्तं ४०३. दो स्थानों से आत्मा केवलीप्रज्ञप्त धर्म को धर्मं लभेत श्रवणतया, तद्यथाक्षयेण चैव, उपशमेन चैव ।
सुन पाती है
भूत्वा
द्वाभ्यां स्थानाभ्यां आत्माकेवल बोधि बुध्येत केवलं मुण्डो अनगारितां प्रव्रजेत्, केवलं ब्रह्मचर्यवासमावसेत्, केवलेन संयमेन संयच्छेत्, केवलेन संवरेण संवृणुयात्, केवलमाभिनिबोधिकज्ञानं उत्पादयेत्, केवलं श्रुतज्ञानं उत्पादयेत्, केवलं अवधिज्ञानं उत्पादयेत्, केवलं मनः पर्यवज्ञानं उत्पादयेत्, तद्यथा
क्षयेण चैव, उपशमेन चैव
ओमिय-काल-पदं
औपमिक-काल-पदम्
४०५. दुविहे अद्धोमिए पण्णत्ते, तं द्विविधं अद्ध्वौपमिकं जहा पलिओमे चेव, तद्यथा—पल्योपमञ्चैव,
सागरोवमे चेव ।
सागरोपमञ्चैव ।
से किं तं पलिओवमे ? तत् किं पल्योपमम् ? पत्योपमम् —
पलिओव
अगारात्
स्थान २ : सूत्र ४०३-४०५
संग्रहणी-गाथा
१. यत् योजनविस्तीर्णं, पल्यं एकाहिक प्ररूढानाम् । भवेत् निरन्तरनिचितं, भरितं बालाकोटीनाम् ॥ २. वर्षशते वर्षशते, एकैकस्मिन् अपहृते यः कालः ।
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कर्मपुद्गलों के क्षय से कर्मपुद्गलों के उपशम से
प्रज्ञप्तम्, ४०५ औपमिक
४०४. दो स्थानों से आत्मा विशुद्ध बोधि का
अनुभव करती है—
मुंड होकर घर छोड़कर सम्पूर्ण अनगारिता - साधुपन को पाती है। सम्पूर्ण ब्रह्मचर्यवास को प्राप्त करती है । सम्पूर्ण संयम के द्वारा संयत होती है। सम्पूर्ण संवर के द्वारा संवृत होती है । विशुद्ध आभिनिबोधिकज्ञान को प्राप्त करती है ।
विशुद्ध श्रुतज्ञान को प्राप्त करती है ।
विशुद्ध अवधिज्ञान को प्राप्त करती है। विशुद्ध मनः पर्यवज्ञान को प्राप्त करती हैक्षय से क्षयोपशम से । और उपशम से
औपमिक काल-पद
क्षयोपशम से
अद्धा काल दो प्रकार का
है - पल्योपम, सागरोपम ।
भंते ! पल्योपम किसे कहा जाता है ?
संग्रहणी-गाथा -
एक अनाज भरने का गड्ढा है। वह एक योजन लम्बा-चौड़ा है। उसमें एक से सात दिन के उगे हुए बालाग्रों के खण्ड ठूस-ठूंसकर भरे हुए हैं। सौ-सौ वर्षों से उनमें से एक-एक बालाग्रखण्ड निकाला जाता है। इस प्रकार उस
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