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ठाणं (स्थान)
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स्थान २ : सूत्र ३६८-४०२
निर्याति,
अत्त-णिज्जाण-पदं ___ आत्म-निर्याण-पदम्
आत्म-निर्याण-पद ३६८. दोहि ठाणेहि आता सरीरं द्वाभ्यां स्थानाभ्यां आत्मा शरीरं ३६८. दो प्रकार से आत्मा शरीर का स्पर्श कर फुसित्ता णं णिज्जाति, तं जहा.- स्पृष्ट्वा निर्याति, तद्यथा
बाहर निकलती हैदेसेणवि आता सरीरं फुसित्ता णं देशेनापि आत्मा शरीरं स्पृष्ट्वा कुछेक प्रदेशों से आत्मा शरीर का णिज्जाति,
स्पर्श कर बाहर निकलती है, सम्वेणवि आता सरीरगं फुसित्ता सर्वेणापि आत्मा शरीरकं स्पृष्ट्वा । सब प्रदेशों से आत्मा शरीर का स्पर्श कर णं णिज्जाति । निर्याति।
बाहर निकलती है। ३६६. 'दोहि ठाणेहिं आता सरीरं द्वाभ्यां स्थानाभ्यां आत्मा शरीरं ३६६. दो प्रकार से आत्मा शरीर को स्फुरित फुरित्ता णं णिज्जाति, तं जहा- स्फोरयित्वा निर्याति, तद्यथा
(स्पन्दित) कर बाहर निकलती हैदेसेणवि आता सरीरं फुरित्ता णं देशेनापि आत्मा शरीरकं स्फोरयित्वा कुछेक प्रदेशों से आत्मा शरीर को स्फुरित णिज्जाति, निर्याति,
कर बाहर निकलती है, सव्वेणवि आता सरीरगं फुरित्ता सर्वेणापि आत्मा शरीरकं स्फोरयित्वा । सब प्रदेशों से आत्मा शरीर को स्फुरित णं णिज्जाति। निर्याति ।
कर बाहर निकलती है। ४००. दोहि ठाणेहिं आता सरीरं द्वाभ्यां स्थानाभ्यां आत्मा शरीरं ४००. दो प्रकार से आत्मा शरीर को स्फुटित फुडित्ता णं णिज्जाति, तं जहा- स्फोटयित्वा निर्याति, तद्यथा
(स्फोट-युक्त) कर बाहर निकलती हैदेसेणवि आता सरीरं फडित्ता णं देशेनापि आत्मा शरीरं स्फोटयित्वा कुछेक प्रदेशों से आत्मा शरीर को स्फुटित णिज्जाति, निर्याति,
कर बाहर निकलती है, सवेणवि आता सरीरगं फुडित्ता सर्वेणापि आत्मा शरीरकं स्फोटयित्वा । सब प्रदेशों से आत्मा शरीर को स्फुटित णं णिज्जाति। निर्याति ।
कर बाहर निकलती है। ४०१. दोहि ठाणेहिं आता सरीरं संवट्ट- द्वाभ्यां स्थानाभ्यां आत्मा शरीरं ४०१. दो प्रकार से आत्मा शरीर को संवर्तित इत्ता णं णिज्जाति, तं जहा.. संवर्त्य निर्याति, तद्यथा
(संकुचित) कर बाहर निकलती हैदेसेणवि आता सरीरं संवट्टइत्ता देशेनापि आत्मा शरीरं संवर्त्य निर्याति, कुछेक प्रदेशों से आत्मा शरीर को णं णिज्जाति,
सर्वेणापि आत्मा शरीरक संवर्त्य संवर्तित कर बाहर निकलती है, सम्वेणवि आता सरीरगं संवट्ट- निर्याति ।
सब प्रदेशों से आत्मा शरीर को संवर्तित इत्ता णं णिज्जाति।
कर बाहर निकलती है। ४०२. दोहि ठाणेहि आता सरीरं द्वाभ्यां स्थानाभ्यां आत्मा शरीरं ४०२. दो प्रकार से आत्मा शरीर को निवर्तित णिवट्टइत्ता णं णिज्जाति, तं निवर्त्य निर्याति, तद्यथा
(जीव प्रदेशों से अलग) कर बाहर जहा
देशेनापि आत्मा शरीरं निवर्त्य निर्याति निकलती हैदेसेणवि आता सरीरं णिवट्टइत्ता सर्वेणापि आत्मा शरीरकं निवर्त्य कुछेक प्रदेशों से आत्मा शरीर को णं णिज्जाति, निर्याति।
निवर्तित कर बाहर निकलती है, सव्वेणवि आता सरीरगं णिवट्ट
सब प्रदेशों से आत्मा शरीर को निवर्तित . इत्ता णं णिज्जाति।
कर बाहर निकलती है।
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