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________________ ६६ ठाणं (स्थान) स्थान २ : सूत्र ३५८-३७२ ३५८. दो दीवकुमारिदा पण्णता, तं द्वौ द्वीपकुमारेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा- ३५८. द्वीपकुमारों के इन्द्र दो हैं___ जहा.-.पुण्णे चेव, विसिटु चेव। पूर्णश्चैव, विशिष्टश्चैव । पूर्ण, विशिष्ट । ३५६. दो उदहिकुमारिदा पण्णत्ता, तं द्वौ उदधिकुमारेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा- ३५६. उदधिकुमारों के इन्द्र दो हैंजहा—जलकते चेव, जलकान्तश्चैव, जलप्रभश्चैव। जलकान्त, जलप्रभ। जलप्पभेचेव। ३६०. दो दिसाकुमारिंदा पण्णत्ता, तं द्वौ दिशाकुमारेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा- ३६०. दिशाकुमारों के इन्द्र दो हैं जहा—अमियगती चेव, अमितगतिश्चैव, अमितवाहनश्चैव। अमितगति, अमितवाहन । अमितवाहणे चेव। ३६१. दो वायुकुमारिदा पण्णत्ता, तं द्वौ वायुकुमारेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा- ३६१. वायुकुमारों के इन्द्र दो हैंजहा—वलंबे चेव, पभंजणे चेव। बेलम्बश्चैव, प्रभजनश्चैव। बैलम्ब, प्रभंजन। ३६२. दो थणियकुमारिदा पण्णत्ता, तं द्वौ स्तनितकुमारेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा- ३६२. स्तनितकुमारों के इन्द्र दो हैंजहा-घोसे चेव, महाघोसे चेव। घोषश्चैव, महाघोषश्चैव। घोष, महाघोष। ३६३. दो पिसाइंदा पण्णत्ता, तं जहा- द्वौ पिशाचेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा- ३६३. पिशाचों के इन्द्र दो हैंकाले चेव, महाकाले चेव। कालश्चैव, महाकालश्चैव। काल, महाकाल। ३६४. दो भूइंदा पण्णत्ता, तं जहा- द्वौ भूतेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा- ३६४. भूतों के इन्द्र दो हैंसुरुवे चेव, पडिरूवे चेव। सुरूपश्चैव, प्रतिरूपश्चैव। सुरूप, प्रतिरूप। ३६५. दो जक्खिंदा पण्णत्ता, तं जहा- द्वौ यक्षेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा- ३६५. यक्षों के इन्द्र दो हैंपुण्णभद्दे चेव, माणिभद्दे चेव। पूर्णभद्रश्चैव, माणिभद्रश्चैव। पूर्णभद्र, माणिभद्र। ३६६. दो रसिदा पण्णत्ता, तं जहा- द्वौ राक्षसेन्द्रौ प्रज्ञप्ती, तद्यथा- ३६६. राक्षसों के इन्द्र दो हैंभीमे चेव, महाभीमे चेव। भीमश्चैव, महाभीमश्चैव। भीम, महाभीम। ३६७. दो किरिंदा पण्णत्ता, तं जहा- द्वौ किन्नरेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा- ३६७. किन्नरों के इन्द्र दो हैंकिण्णरे चेव, किंपुरिसे चेव। किन्नरश्चैव, किंपुरुषश्चैव । किन्नर, किंपुरुष। ३६८. दो किंपुरिसिंदा पण्णत्ता, तं द्वौ किंपुरुषेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा- ३६८. किंपुरुषों के इन्द्र दो हैंजहा-सप्पुरिसे चेव, सत्पुरुषश्चैव, महापुरुषश्चैव। सत्पुरुष, महापुरुष। महापुरिसे चेव। ३६९. दो महोगिंदा पण्णत्ता, तं जहा- द्वौ महोरगेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा- ३६६. महोरगों के इन्द्र दो हैं अतिकाए चेव, महाकाए चेव। अतिकायश्चैव, महाकायश्चैव। अतिकाय, महाकाय। ३७०. दो गंधविदा पण्णत्ता, तं जहा- द्वौ गन्धर्वेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा- ३७०. गन्धर्वो के इन्द्र दो हैंगीतरती चेव, गीयजसे चेव। गीतरतिश्चैव, गीतयशाश्चैव। गीतरति, गीतयशा। ३७१. दो अणपण्णिंदा पण्णता, तं द्वौ अणपन्नेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा- ३७१. अणपन्नों के इन्द्र दो हैंजहा....सण्णिहिए चेव, सन्निहितश्चैव, सामान्यश्चैव। सन्निहित, सामान्य। सामण्णे चेव। ३७२. दो पणपणिंदा पण्णत्ता, तं जहा- द्वौ पणपन्नेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा- ३७२. पणपन्नों के इन्द्र दो हैंधाए चेव, विहाए चेव। धाता चैव, विधाता चैव । धाता, विधाता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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