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ठाणं (स्थान)
स्थान २ : सूत्र ३४६-३५७ ३४६. पुक्खरवरदीवड्डपच्चत्थिमद्धे णं पुष्करवरद्वीपार्धपाश्चात्याधै मन्दरस्य ३४६. अर्द्ध पुष्करवर द्वीप के पश्चिमाद्धं में
मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे पर्वतस्य उत्तर-दक्षिणे द्वे वर्षे प्रज्ञप्ते- मन्दर पर्वत के उत्तर-दक्षिण में दो क्षेत्र णं दो वासा पण्णत्ता तहेव तथैव नानात्वम्—कूटशाल्मली चैव, हैं-भरत-दक्षिण में, ऐरवत-उत्तर णाणत्तं कूडसामली चेव, महापद्मरुक्षश्चैव ।
में। इसी प्रकार जम्बूद्वीप के प्रकरण में महापउमरुक्खे चेव। देवो गरुडश्चैव वेणु देवः, पुण्डरीकश्चैव। आए हुए सूत्र २।२६८-३२० तक का देवा—गरुले चेव वेणुदेवे, पुंडरीए
वर्णन यहां वक्तव्य है। चेव ।
विशेष इतना ही है कि यहां दो विशाल महाद्रुम हैं-कूटशाल्मली, महापद्म । देव दो हैं-कूटशाल्मली पर गरुड जाति
का वेणुदेव, महापद्म पर पुण्डरीक देव । ३५०. पुक्खरवरदीवड्ड णं दीवे दो पुष्करवरद्वीपार्धे द्वीपे द्वे भरते, द्वे ३५० अर्द्ध पुष्करवर द्वीप में भरत, ऐरवत से
भरहाई, दो एरवयाइं जाव दो ऐरवते यावत् द्वौ मन्दरौ, द्वे मन्दर- मन्दर और मन्दरचूलिका तक के सभी मंदरा, दो मंदरचूलियाओ। चूलिके।
दो-दो हैं।
वेदिका-पदं वेदिका-पदम्
वेदिका-पद ३५१. पुक्खरवरस्स णं दीवस्स वेइया पुष्करवरस्य द्वीपस्य वेदिका द्वे गव्यूती ३५१. पुष्करवर द्वीप की वेदिका दो कोस ऊंची
दो गाउयाई उड्डमुच्चत्तेणं पण्णत्ता। ऊर्ध्वमुच्चत्वेन प्रज्ञप्ता। ३५२. सर्वसिपि णं दीवसमुद्दाणं सर्वेषामपि द्वीपसमुद्राणां वेदिका द्वे ३५२. सभी द्वीपों और समुद्रों की वेदिका दो-दो
वेदियाओ दो गाउयाई उड्डमुच्च- गव्यूती ऊर्ध्वमुच्चत्वेन प्रज्ञप्ता। कोस ऊंची है। तेणं पण्णत्ताओ।
इंद-पदं इन्द्र-पदम्
इन्द्र-पद ३५३. दो असुरकुमारिदा पण्णत्ता, तं द्वौ असुरकुमारेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा- ३५३. असुरकुमारों के इन्द्र दो हैंजहा—चमरे चेव, बली चेव। चमरश्चैव, बलिश्चैव।
चमर, बली। ३५४. दो णागकुमारिदा पण्णत्ता, तं द्वौ नागकुमारेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा- ३५४. नागकुमारों के इन्द्र दो हैंजहा—धरणे चेव, भूयाणंदे चेव। धरणश्चैव, भूतानन्दश्चैव ।
धरण, भूतानन्द। ३५५. दो सुवण्णकुमारिदा पण्णत्ता, तं द्वौ सुपर्णकुमारेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा- ३५५. सुपर्णकुमारों के इन्द्र दो हैंजहा.-वेणुदेवे चेव, वेणुदेवश्चैव, वेणुदालिश्चैव।
वेणुदेव, वेणुदाली। वेणुदाली चेव। ३५६. दो विज्जुकुमारिदा पण्णत्ता, तं द्वौ विद्युत्कुमारेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा- ३५६. विद्युत्कुमारों के इन्द्र दो हैंजहा—हरिच्चेव, हरिस्सहे चेव। हरिश्चैव, हरिसहश्चैव।
हरि, हरिसह । ३५७. दो अग्गिकुमारिंदा पण्णत्ता, तं द्वौ अग्निकुमारेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा- ३५७. अग्निकुमारों के इन्द्र दो हैंजहा—अग्गिसिहे चेव, अग्निशिखश्चैव, अग्निमाणवश्चैव।
अग्निशिख, अग्निमानव । अग्गिमाणवे चेव।
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